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Saturday, 15 April 2023

कुमाऊनी भजन: माता रानी

 मुखड़ा- ऊंच- नीचा डांड्यू कै करी पार।

मैं आयूं मैया त्यर द्वार मा।।

दर्शन तू दी जा इक बार।

ऐजा मैया बैठि शेर मा।।

 

कोरस- ऐजा मैया बैठि शेर मा, ऐजा मैया बैठि शेर मा,

दर्शन तू दी जा इक बार, म्येरी मैया बैठि शेर मा।।


अंतरा- दूर- दूरां बै मैया भक्ता ऐ रैयीं।

कोई झांवरी, कोई बिछिया ल्यै रैयीं।।

त्यर खुटा में पायल मैं पैरूल।

तू ऐजा मैया बैठि शेर मा।।


अंतरा- दूर- दूरां बै मैया भक्ता ऐ रैयीं।

कोई लंहगा, कोई साड़ी ल्यै रैयीं।।

चुन्नी त्वैकैणी मैं उड़ूंल।

तू ऐजा मैया बैठि शेर मा ।।


अंतरा - दूर- दूरां बै मैया भक्ता ऐ रैयीं।

कोई हंसुली, कोई चूड़ी ल्यै रैयीं।।

त्यर हाथा मेहंदी मैं लगूंल।

तू ऐजा मैया बैठि शेर मा ।।


अंतरा- दूर- दूरां बै मैया भक्ता ऐ रैयीं।

कोई हरूवा, कोई झुमकी ल्यै रैयीं।।

नथुलि त्वै कैणी मैं पैरूंल।

तू ऐजा मैया बैठि शेर मा।।


अंतरा- दूर- दूरां बै मैया भक्ता ऐ रैयीं।

कोई टिकुली, कोई मुकुट ल्यै रैयीं।।

ल्यांयू मैं बिंदी- इंगूर।

तू ऐजा मैया बैठि शेर मा।।


कोरस- ऐजा मैया बैठि शेर मा, ऐजा मैया बैठि शेर मा।

दर्शन तू दी जा इक बार, म्येरी मैया बैठि शेर मा।।


स्वरचित- मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

मूल निवासी- हल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखंड।






Saturday, 17 December 2022

कुमाऊनी गीत: दगड़ियो शुभ घड़ी ऐगे आज।

मुखड़ा- दगड़ियो, हे, दगड़ियों,,, हैगीं म्यर पिल हाथ।

मैं नाचुल, मैं नाचुल, हम नाचुल सारि, सारि रात।।२

दगड़ियो, हे, दगड़ियों,,, शुभ घड़ि ऐरै आज।

मैं नाचुल,,, मैं नाचुल, हम नाचुल सारि, सारि रात।।२


अंतरा- बंबई बै, बंबई बै काक म्यरा ऐई गईं।

दिल्ली बै दिल्ली बै माम लै ऐई गईं ।।

ऐ गईं, म्यरा सबै न्यौतार।

मैं नाचुल,मैं नाचुल, सब नाचुल सारि, सारि रात।।


अंतरा-  मैंहदी,,,मैंहदी रचणै हाथन में।

धक- धक मच रै क्वाठ न में ।।

आंखों मा स्वीण सजी छैं हजार।

मै नाचुल, मैं नाचुल सब नाचुल सारि, सारि, रात।।


अंतरा- मटुक म्यरा, मुकुट बधौल भोल ख्वर माथ।

बंधेली  बंधैली डोरी सुवा की साथ।। 

छाजेली छाजेली बाज गाजा दगैड़ी बारात।

मैं नाचुल, मैं नाचुल, सब नाचुल सारि, सारि रात।।


अंतरा- पल- पला यौ घड़ी लागणी मैं हुणी साल।

सुवा त्वैकै कसिकै बतौ आपणी क्वाठे की हाल।।

डीजे में डीजे में मचूल आज धमाल 

मैं नाचुल, मैं नाचुल, हम नाचुल सारि, सारि रात।।


दगड़ियो, हे, दगड़ियों,,, शुभ घड़ि ऐरै आज।

मैं नाचुल,,, मैं नाचुल, हम नाचुल सारि, सारि रात।।२


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश। 

मूल निवासी: हल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखंड।

Wednesday, 23 November 2022

बाल कविता: उजड्डी


पढ़- पढ़ कर थक गए टिंकू भाई।
चूहे ने पेट में धमाल मचाई।।
टिंकू को दादी की याद है आई।
दादी से की थी पांच रुपए की कमाई।।
पांच रुपए देखकर जी ललचाया।
आहा चटपटा कुरकुरा! याद है आया।। 
उसने खुरापाती दिमाग दौड़ाया। 
खुद को धम्म से बेड के नीचे लुढ़काया।।
धम्म की आवाज सुन मम्मी दौड़ी। 
मम्मी के पीछे, चाची- ताई दौड़ी।।
अरे। बेचारा गिर गया नीचे।
लिया गोदी में और ममता से सींचे।।
ताई ने टिंकू की गाल थपथपाई।
जा बेटा खेल ले चाची ने दी दुहाई।।
टिंकू जी की लॉटरी लग गई।
बल्ले- बल्ले नाचे टिंकू भाई।।
संग दादी के वो निकल गया।
पांच रुपए का कुरकुरा लिया।।
कुरकुरा देखकर मुस्कान है छाई।
शरारती टिंकू ने ली अंगड़ाई।।

स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट, 
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

Saturday, 24 September 2022

बाल कहानी: पीड़।

राहुल स्कूल में रोज सी जांछी, उ भौत कोशिश करछी कि उ नैं सितो, पर लाख कोशिशों क बावजूद वीक आंखि म नीन तैर जांछी।

राहुल क कक्षा में सीतन मासाब कै भौत अखर छी, उ रोज राहुल कै कक्षा क भ्यार ठाड़ कर द्यी छी।

राहुल चुपचाप जाल और भ्यार ठाड़ि है जाल। वीक क कक्षा क नाण भ्यार- भितेर जाण तक वीकै चिढ़ौछी, उ दिवाल कै मुखड़ी कर बेर आपुण आंसु खड़ छी। वीक आंसु कै क्वै नैं द्यैखिछी।

अलीबेर देवलचौड़ क स्कूल में कक्षा ४ म राहुल क नौ लिखी गौ। नई स्कूल, नई माहौल, मलि बै पहाड़ जस दुःखयोनय शायद यौ ई कारण ल राहुल क कक्षा में क्वै दगड़ू नैं छी। नैं उ क्वै दगड़ खेलछी, और नैं क्वै संग बात- चीत करछी।

राहुल क कक्षा क मासाब निगुर- निपुड़ैंन मैंस छी, पर स्कूल क हेडमास्टनी भौत भलि सैंणी छी। उ भौत अनुशासन ल स्कूल चलौछी, और स्कूल क नाणा कै उ भलि- भलि चारि समझ छी।

स्कूल में आई नई च्यल कै रोज कक्षा क भ्यार ठाड़ द्यैखि बेर हेड मास्टरनी ज्यू ल चपड़ासि थै कवै बेर वी कै आपणी आफिस में बुला। 

चपड़ासि ल कक्षा में ऐ बेर मासाब थै कौ, "मासाब जो च्यल रोज भ्यार बै ठाड़ि है रौं, वीकै हैड मास्टरनी ज्यू बुलौणी‌।"

मासाबूं ल राहुल कै बुला, और उ थै कुणी! "राहुल, मैं ल कतुक बार कौछी, कक्षा में झन सित, झन सित,,,, पर त्वेल म्येरी एक नैं सुणी!,,, अब देख! हेडमास्टरनी ज्यू ल बुलै है!,,,,अब त त्यर भगवानै मालिक छू,,,, जा,,, मिलबेर आ हेडमास्टरनी ज्यू है!,,," 

राहुल डरन- मरने चपड़ासि क पछिल बै बाट लागि गो, और आफिस में जाई बेर उ एक कुण म ठाडि है गो। 

उ बखत मास्टरनी ज्यू कोई फाइल द्येखणै छी। राहुल कै द्यैख बेर कुणी, " सामणी ऐ बेर ठाड़ि हो च्यला, कै नौ छू त्यर?"  

हेडमास्टरनी ज्यू बात सुणीबेर उ थ्वाड़ अघिन कै खिसकौ और कामणी आवाज में कुणौ, "राहुल।"

"अरे,, मैं कै सुणाई नैं दिणैं, थ्वाड़ और आघिन कै आ, !" 

राहुल माठु- माठ कै हेड मास्टरनी ज्यू क मेज क पास ऐ बेर ठाड़ है गो,,, हेडमास्टरनी ज्यू ल गौर ल वीक मुखड़ी कै द्यैखी, वीक आंखि में भौतै डर, थकाई साफ द्यिखीण छी, और मुखणी में पीड़ साफ झलकन छी।

हेड मास्टरनी ज्यू फिर कुणी, अब बता कै नौ छू त्यर?

"राहुल"

"त्यर बाज्यू नौ?"

"पान सिंह।"

"त्यर ईजा नौ?"

" कमला।" 

"त्यर घर कां छूं?"

"म्यर घर?

पैली अल्म्वाड़ छी, पर अब मैं अपुण काक- काखी दगड़ भाबर देवलचौड़ रौनूं।"

"अल्म्वाड़! इतुक भलि- भलि जाग छोड़ि बेर भाबर क लू खाण क ल्यी किलै आईं भयै तू?"

हैड मास्टरनी ज्यू बात सुन बेर राहुल क मुखड़ी सुदै स्येति पढ़ि गै। 

और वीक आंख डबडबै आईं।

"बता,,, अल्म्वाड़ जस स्वर्ग छोडि बेर यौ भाबर क घाम खन किलै आईं भयै तू?"

" को,,को,,,को,,"

"को?,,,कै? को? "

बड़ि ताकत लगै बेर राहुल क गाउ बै आवाज निकली, 

 "को,,,कोरोना,,, में म्यर इजा- बाज्यू द्विनों आकाश में जाई बेर तार बन गई।,,,उ मैं कै, म्येरी बैणी कै यूं दुणी में यकैलै छोड़ गई।,,,, म्येरी,, बैणी कै माकोट म्यर मामा ल्यी गई,,, और,, मैं कै म्यर काका- काखी ल्यी आई,,,"

फिर तो उ अपुन डाढ़ कै रोकि नै पै,,,,वीक डाढ़ में इतुक पीड़ छी, कि वीक डाढ़ सुणि बेर ढुंग क लै आंसू निकल जाण। वीक डाढ़ कै द्यैखिबेर हेडमास्टरनी ज्यू ल आपणी डाढ़ बड़ मुश्किल ल थामि। उं आपणी कुर्सी है उठी और राहुल क पुठ मुसारन लागि।,,, 

राहुल डाढ़ मारने कुण लागौ ,, "भैंजी, मैं कै अपुण इजा- बाज्यू और बैणी क भौत निराई लागि गै, मैं आपणी बैणी कै कसिक द्यैखू? उ है कसिक मिलूं?"  

"भैंजी, हमर इज- बाज्यू हमूं कै भौ तै भल माणि छी,,,, पर! अब हमूं कै क्वै भल नैं माणन।,,, मैं कसिक रौं अपुन इजा- बाज्यू बिना,,,, कसिक रौं आपणी बैणी बिना ,,,,,,, भैंजी, मामा- मामि त खेत म  जाणि हुन्याल!  तब म्यर बैणी कै क्वै द्येखौ हुन्यौल? क्वै उकै खवौ हुन्यौल?,,, म्येरी बेणी त भौते नानि छू।,,,,,हम भै- बैणी कभी मिलूल?,,,"

"भैंजी, जब रात में तार निकलनी त मैं घंटों ईजा- बाज्यू थै बात करनूं, कभै उन्हा थैं शिकैत करनूं, त कभै डाढ़ मांरनू, कभै आशिर्वाद मांगनू त शक्ति मांगनू।"  

"भैंजी, तुम जादू क कोई छड़ी घुमे बेर म्येरी परिवार कै ढूंढ बेर लै द्यौ।,,, कम से कम म्येरी बैणी कै त ल्यैई द्यौ।"

यौ कुण- कुणै राहुल ल ड़ाढा- डाढ़ मचै द्यी। राहुल क डाढ़ और उ क सवालों क हेड मास्टरनी ज्यू पास क्वै जवाब नैं छी।

हेडमास्टरनी ज्यू ल राहुल कै कसिबेर अंगवाव भेड़ि द्यी। और उनरी आंखों बै लै आंसू क तड़तड़ाट है पड़ी।,,, राहुल क ख्वार मुसारते हुए उ सोचण लागि,,, "सिबौ लै, मासाब कै कभै लै यौ भव्व क पीड़ क एहसास नैं है हुन्यौल?,,, इतुक नाण भव्व पर कुदरत क इतुक ठुलि मार,,, हे! द्याप्तौ,, यौ भव्व ल्यी तुमुल अपुण आंख किलै बुजि द्यी।,,,,यूं नाणा क काका -काखी, मामा- मामी आपुण फर्ज त निभौण लागि री!,,, पर कै!,,,, आपुण यौ फर्ज कै उ इमानदारी ल निभौणी या फिर यूं नाणा कै उं ब्वौझ समझनी?,,," 

"यौ समाज क और इनर अपणा क थ्वाड़ लै सांचि माया इन नाणा में पड़ जाणी त यूं नाणा क जीवन सपड़ जाण।" 

अलछिन कोरोना किलै आछै तू!,,,बिन कसूरै एक हंसणी- खेलणी परिवार कै त्वील उज्याड़ बेर रख द्यी।

स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट,

गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।

मूल निवासी- हल्द्वानी नैनीताल, 

उत्तराखंड।

Tuesday, 16 August 2022

मातृभूमि: कविता

सौ-सौ बार पैलाग भारत भूमि,

मैं त्यर वीर जवान छूं।

मातृ भूमि में माया पड़ी गे, 

मैं मातृ भूमि पै कुर्बान छूं।।


म्यर देशक लहरौणी तिरंग,

म्येरी आन और शान छू।

मातृभूमि की रक्षा करन,

यौई म्येरी पहचाण छू।।


केसरि रंग ल मनखियों क क्वाठ में,

देश क ल्यी माया द्यी जगै द्यी।

स्यत रंग ल देश भर कै,

अमन चैन क पाठ पढ़ै द्यी।।


हरि रंग ल खुशी क बौछार करबेर,

म्यर देश कै संपन्न कर कर द्यी।

तिरंग क बीच क चक्र ल सबूं कै,

धर्म और कर्तव्य क पाठ पढ़ै द्यी।।


म्यर यौ जीवन हे मातृभूमि,

तुमरी अमानत छू।

मातृभूमि में कुर्बान है जूं मैं, 

बस इतुकै म्येरी इच्छा छू ।।


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट, 

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

Thursday, 4 August 2022

कोरोनाकाल: कविता।

कोरोना काल क टैम छू,

चैत्र क यौ महैंण छू।

नाण-तिनौं क नैं क्वै चिचाट है रौ,

गूं भरि में बड़ उदेख छै रौ।


अ- आ, क- ख, पढ़नें- पढ़नें,

मधुलि दबड़ है भ्यार कै द्यैखनें। 

द्येखि जालि, कभै परुली भ्यार फन,

शान-शान में बात-चित कर लिन।।


इजा क खुटा क धप- धपाट सुणी बेर;

मधुलि सरासर भागी भितेर।

देखि मधुलि क मने क छटपटाट,

ईजा ल मायाजाव क करि तड़तड़ाट।।


च्येली! मन लगै बेर जब तू पढ़लि,

अघिन कै कक्षा में तबै बढ़लि।

माया लुटै बेर समझा मधुलि कै,

द्वी गज क दूरि क फैद बता वीकै।।


समझन में मधुलि ल करि नैं देर,

कुणी, ईजा! अब पढ़न में नैं करुल अबेर।

नई कक्षा क आंखों में स्वीण सजै,

भै गे मधुलि पढ़ कै।।


स्वरचित: मंजू बिष्ट;

गाजियाबाद; उत्तर प्रदेश।

कोरोनाकाल में स्कूल क याद: कुमाऊनी कविता।

चैत- बैसाख बीति गौ ईजा,

मैं स्कूल अब! कब जौंल।

याद आणी मैं कै खिमिया- मोहना, 

मैं पढ़न अब! कब जौंल।।


यौ द्येख! म्यर बस्त मैं हुणी,

रोज एकै बात पुछै छू।

कापि- किताब, रबर-पेंसिल कै,

कब! बटोव बेर रखन छू।।


अलमारि में धरि ड्रेस लै,

म्यर कान में यौ कुणै।

अलमारि में पड़ि- पड़ि बेर, 

मैं कै औस्याण औरैं।।


ज्वात, जुराब लै कभै बै, 

उदैखि बेर कुण म पड़ि छैं।

जब लै मैं खेलनू भितर फना,

मैं कै धाल लगौनी छैं।।


जेठ क महैण लागि गौ ईजा, 

अब छुट्टि ल लै शुरू है जाण छू।

तु ई बतै दै मैं कै जरा,

अब कब! स्कूल जाण छू।।


च्यलै क बात सुणि ईजा ल,

च्यल कै काखि में भैठाई द्यी।

मायाजाव ल ख्वार मुसारी,

फिर च्यल कै समझे द्यी।।


थ्वाड़ दिनों क बात छू च्यला,

यौ टैम लै एक दिन कट जाल।।

तुम सब स्कूल जरूर जाला,

उ टैम जल्दी लौट बेर आल।।


स्वरचित: मंजू बिष्ट,

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

Wednesday, 29 June 2022

कृपा करौ इंद्र ज्यू : कविता

जेठ क यौ महैणा, 

भाबर क यौ तात (काउ) घामा।

गर्मी ल मचै रौ भौते हाइ- हाइ,

गरम ल झुरी गी हमर पराणा।।


बैठि- बैठि मैं सोचणें यूं, 

इतुक गर्मी क कारण कै छू? 

 मैं कै लागणौ यौ इजू, 

डावां कै काटन क यौ परिणाम छू।।


हाथ जोड़ि  मैं भै रैयूं ,

प्रार्थना इंद्र ज्यू थै करनै यूं ।

 सुण लि्या, सुण लि्या इंद्र ज्यू,

अब नैं काट ल क्वै डावां कै यूं ।।


बाड़-खुड़ि सबैं मुरझै गईं,

प्रचंड घाम ल सुखि गईं।

चाड- पिटुक त्यर बाट द्यैखणी, 

पाणी क तीस ल तड़फ गईं।।


गाड़- गद्यार सबै सुखि गईं, 

माछ लै भौते परेशान हैं गईं।

ऐ जा रे, ऐ जा ओ बादवा,

संग में दबड कै द्यौ ल्यी आ।। 


हम सब नाणों क आस तुम,

द्यौ खतकाला आज तुम।

कसिकै बतूं ओ इंद्र ज्यू, 

गर्मी ल है गयूं परेशान हम।। 


इन्द्र ज्यूल ल नाणा क धाल सुणी।

आसमान में बादव गड़- गड़ानी।

झुड़- मुड़, झुड़ मुड़ द्यौ झुमझुमानी,

नाण खुशि ह्वै बेर द्यौ में नाचैंणी।।


स्वरचित रचना : मंजू बोहरा बिष्ट;

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

प्रकाशित

Wednesday, 22 June 2022

पाणी: कविता

 मैं नैं क्वै गाड़ छूं,

 नैं क्वै गद्यार छूं।

मैं त बस एक गागरी क,

ठंड- मिठ पाणी छूं।।


ख्वार में गागरी धरबेर, 

कोसों दूर हिटबेर।

मंजू क नौंल बै ल्याई हुई,

मैं उई ठंड- मिठ पाणी छूं।।


नौंल बै मंजू बाट लागी,

बाट में मिलौ एक जोगी।

कुणौ, इजू पाणी पिवै दै,

मैं कै छू भौतै तीस लागी।।


गागरी बिसै, घुन में धरि,

जोगी ल लै आपुण आंचुली छोड़ि।

पाणी पिवाई जोगी कै,

पै मंजू अघिन कै बाट लागि।।


जसिकै मंजू आघिन बढ़ि,

सामणी द्येखिणी घस्यारि औणी।

पाणी द्यैखी बेर उ लै कुणी, 

पीवै द्यिला दीदि कै हमूंकै पाणी??


मुलमुली हंसी मंजू हंसणी,

किलै नै, बिसै दियौ घा गुढैयी।




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Tuesday, 21 June 2022

बाल कविता: गोपी

नान- नानु भल- भलौ,

थ्वौप जसौ भौ छू मैं।

लाड़िल मैं घर भरी कौ,

सूपी गूं क गोपी छू मैं।।


सिद- साध छैं आमा- बूबू ,

बंधि छैं उनरी मायाजाव में। 

खाट में बैठि द्यैखि रौनी, 

हम नाण, उनर पराण छैं।


उठ इजा- ठुल बा थै कुणी,

उं, घरा क धुरी छैं।

उनुल बटोव रखि राखौ,

हमरि घर- परिवार कैं।।


रत्तै, दौफर, और ब्यखुली कैं,

म्येरी काखियां रौनी चूल्याण में।

भल- भलो, रसिल खाणु बणौनी,

रस्याखाण क उन किरसाण छैं।। 


गोरू- बछां क काम- धाम,

ठुलि इजा, इजा क नाम छू। 

काका द्येखैणीं खेत- पाति।

परिवार में बंटि काम छू।।


बोज्यू जाई रयी पल्टना में,

उं घर क शान छैं।

साल म जब उं घर औनी, 

घर म बहार छाई जैं ।।


म्येरी बुआ क काम छू,

हम नाणा कै पढ़ौना।

खालि टैम में हम सबूं क,

काम छू सिर्फ खेलणा।।


आपणी भै- बणी में, 

मैं सबूं है नाण छूं।

माया लुटौणी मैं में भौते ,

मैं सबूं क प्राण छूं।।


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

मूलनिवासी: हल्द्वानी, नैनीताल।

उत्तराखंड।

Saturday, 25 December 2021

ऐ जा रे पहाड़ मा: कुमाऊनी गीत।

ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे....

मुखड़ा: ऐ जा सुवा, ऐ जा सुवा, ऐ जा रे पहाड़ मा,

ऐ जा रे पहाड़ मा।

कसि पड़ी गे त्वै मा माया, मरि ज्यूंला त्येरी याद मा।।२...

ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे....


अंतरा: दिन बिति गे, रात बिति गे, बिति गो महैंणा, बिति गो महैंणा।

त्येरी माया मा घुलि- घुली, म्यर जानी पराणा।। २..

ऐ सुवा ऐ जा सुवा, किलै भूली गैछै तू ? 

किलै भूली गैछै तू ?

परदेशे की हवा- पाणी, कै इतु खराब छू ?२..

ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे...


मुखड़ा: ऐ जा सुवा, ऐ जा सुवा, ऐ जा रे पहाड़ मा,

ऐ जा रे पहाड़ मा।

कसि पड़ी गे त्वैमें माया, मरि ज्यूंला त्येरी याद मा।। २...


अंतरा: कसिकै बतौ, मैं त्वै कैनी, हिया की यौ पीड़ा, हिया की यौ पीड़ा।

हिया कै पिड़ौनै सुवा, बिरहा का शूला।।२...

ऐ जा सुवा, ऐ जा सुवा, किलै तड़पौछें तू ?

किलै तड़पौछे तू ?

त्येरी सौं मैं मरि ज्यूंला, मैं त्येरी माया मा छूं।।२..

ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे..


मुखड़ा: ऐ जा सुवा, ऐ जा सुवा, ऐ जा रे पहाड़ मा,

ऐ जा रे पहाड़ मा।

कसि पड़ी गे त्वैमें माया, मरि ज्यूंला त्येरी याद मा।। २..


अंतरा: याद औनी, मैं कैनी, उं, बिति दिना की बाता, बिति दिना की बाता।

भै रौछीं हम, डाना- काना, हाथ मा धरि हाथा।। २...

ऐ जा सुवा ऐ जा सुवा, भैठि रैयूं बाटा मा,

मैं भैठि रैयूं बाटा मा।

त्येरी सौं, मैं मरि ज्यूंला, अब ऐ जा पहाड़ मा।।२...

ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे..


मुखड़ा: ऐ जा सुवा ऐ जा सुवा ऐ जा रे पहाड़ मा,

ऐ जा रे पहाड़ मा।

कसि पड़ी गे त्वैमें माया, मरि ज्यूंला त्येरी याद मा।।२..

ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे, ऐ जा रे..


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

मूल निवासी- हल्द्वानी, नैनीताल। उत्तराखंड।

कुमाऊनी भजन: माता रानी

  मुखड़ा- ऊंच- नीचा डांड्यू कै करी पार। मैं आयूं मैया त्यर द्वार मा।। दर्शन तू दी जा इक बार। ऐजा मैया बैठि शेर मा।।   कोरस- ऐजा मैया बैठि शे...