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Wednesday 22 June 2022

पाणी: कविता

 मैं नैं क्वै गाड़ छूं,

 नैं क्वै गद्यार छूं।

मैं त बस एक गागरी क,

ठंड- मिठ पाणी छूं।।


ख्वार में गागरी धरबेर, 

कोसों दूर हिटबेर।

मंजू क नौंल बै ल्याई हुई,

मैं उई ठंड- मिठ पाणी छूं।।


नौंल बै मंजू बाट लागी,

बाट में मिलौ एक जोगी।

कुणौ, इजू पाणी पिवै दै,

मैं कै छू भौतै तीस लागी।।


गागरी बिसै, घुन में धरि,

जोगी ल लै आपुण आंचुली छोड़ि।

पाणी पिवाई जोगी कै,

पै मंजू अघिन कै बाट लागि।।


जसिकै मंजू आघिन बढ़ि,

सामणी द्येखिणी घस्यारि औणी।

पाणी द्यैखी बेर उ लै कुणी, 

पीवै द्यिला दीदि कै हमूंकै पाणी??


मुलमुली हंसी मंजू हंसणी,

किलै नै, बिसै दियौ घा गुढैयी।




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