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Thursday 4 August 2022

कोरोनाकाल में स्कूल क याद: कुमाऊनी कविता।

चैत- बैसाख बीति गौ ईजा,

मैं स्कूल अब! कब जौंल।

याद आणी मैं कै खिमिया- मोहना, 

मैं पढ़न अब! कब जौंल।।


यौ द्येख! म्यर बस्त मैं हुणी,

रोज एकै बात पुछै छू।

कापि- किताब, रबर-पेंसिल कै,

कब! बटोव बेर रखन छू।।


अलमारि में धरि ड्रेस लै,

म्यर कान में यौ कुणै।

अलमारि में पड़ि- पड़ि बेर, 

मैं कै औस्याण औरैं।।


ज्वात, जुराब लै कभै बै, 

उदैखि बेर कुण म पड़ि छैं।

जब लै मैं खेलनू भितर फना,

मैं कै धाल लगौनी छैं।।


जेठ क महैण लागि गौ ईजा, 

अब छुट्टि ल लै शुरू है जाण छू।

तु ई बतै दै मैं कै जरा,

अब कब! स्कूल जाण छू।।


च्यलै क बात सुणि ईजा ल,

च्यल कै काखि में भैठाई द्यी।

मायाजाव ल ख्वार मुसारी,

फिर च्यल कै समझे द्यी।।


थ्वाड़ दिनों क बात छू च्यला,

यौ टैम लै एक दिन कट जाल।।

तुम सब स्कूल जरूर जाला,

उ टैम जल्दी लौट बेर आल।।


स्वरचित: मंजू बिष्ट,

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

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