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Wednesday 29 June 2022

कृपा करौ इंद्र ज्यू : कविता

जेठ क यौ महैणा, 

भाबर क यौ तात (काउ) घामा।

गर्मी ल मचै रौ भौते हाइ- हाइ,

गरम ल झुरी गी हमर पराणा।।


बैठि- बैठि मैं सोचणें यूं, 

इतुक गर्मी क कारण कै छू? 

 मैं कै लागणौ यौ इजू, 

डावां कै काटन क यौ परिणाम छू।।


हाथ जोड़ि  मैं भै रैयूं ,

प्रार्थना इंद्र ज्यू थै करनै यूं ।

 सुण लि्या, सुण लि्या इंद्र ज्यू,

अब नैं काट ल क्वै डावां कै यूं ।।


बाड़-खुड़ि सबैं मुरझै गईं,

प्रचंड घाम ल सुखि गईं।

चाड- पिटुक त्यर बाट द्यैखणी, 

पाणी क तीस ल तड़फ गईं।।


गाड़- गद्यार सबै सुखि गईं, 

माछ लै भौते परेशान हैं गईं।

ऐ जा रे, ऐ जा ओ बादवा,

संग में दबड कै द्यौ ल्यी आ।। 


हम सब नाणों क आस तुम,

द्यौ खतकाला आज तुम।

कसिकै बतूं ओ इंद्र ज्यू, 

गर्मी ल है गयूं परेशान हम।। 


इन्द्र ज्यूल ल नाणा क धाल सुणी।

आसमान में बादव गड़- गड़ानी।

झुड़- मुड़, झुड़ मुड़ द्यौ झुमझुमानी,

नाण खुशि ह्वै बेर द्यौ में नाचैंणी।।


स्वरचित रचना : मंजू बोहरा बिष्ट;

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

प्रकाशित

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