जेठ क यौ महैणा,
भाबर क यौ तात (काउ) घामा।
गर्मी ल मचै रौ भौते हाइ- हाइ,
गरम ल झुरी गी हमर पराणा।।
बैठि- बैठि मैं सोचणें यूं,
इतुक गर्मी क कारण कै छू?
मैं कै लागणौ यौ इजू,
डावां कै काटन क यौ परिणाम छू।।
हाथ जोड़ि मैं भै रैयूं ,
प्रार्थना इंद्र ज्यू थै करनै यूं ।
सुण लि्या, सुण लि्या इंद्र ज्यू,
अब नैं काट ल क्वै डावां कै यूं ।।
बाड़-खुड़ि सबैं मुरझै गईं,
प्रचंड घाम ल सुखि गईं।
चाड- पिटुक त्यर बाट द्यैखणी,
पाणी क तीस ल तड़फ गईं।।
गाड़- गद्यार सबै सुखि गईं,
माछ लै भौते परेशान हैं गईं।
ऐ जा रे, ऐ जा ओ बादवा,
संग में दबड कै द्यौ ल्यी आ।।
हम सब नाणों क आस तुम,
द्यौ खतकाला आज तुम।
कसिकै बतूं ओ इंद्र ज्यू,
गर्मी ल है गयूं परेशान हम।।
इन्द्र ज्यूल ल नाणा क धाल सुणी।
आसमान में बादव गड़- गड़ानी।
झुड़- मुड़, झुड़ मुड़ द्यौ झुमझुमानी,
नाण खुशि ह्वै बेर द्यौ में नाचैंणी।।
स्वरचित रचना : मंजू बोहरा बिष्ट;
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
प्रकाशित
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