नान- नानु भल- भलौ,
थ्वौप जसौ भौ छू मैं।
लाड़िल मैं घर भरी कौ,
सूपी गूं क गोपी छू मैं।।
सिद- साध छैं आमा- बूबू ,
बंधि छैं उनरी मायाजाव में।
खाट में बैठि द्यैखि रौनी,
हम नाण, उनर पराण छैं।
उठ इजा- ठुल बा थै कुणी,
उं, घरा क धुरी छैं।
उनुल बटोव रखि राखौ,
हमरि घर- परिवार कैं।।
रत्तै, दौफर, और ब्यखुली कैं,
म्येरी काखियां रौनी चूल्याण में।
भल- भलो, रसिल खाणु बणौनी,
रस्याखाण क उन किरसाण छैं।।
गोरू- बछां क काम- धाम,
ठुलि इजा, इजा क नाम छू।
काका द्येखैणीं खेत- पाति।
परिवार में बंटि काम छू।।
बोज्यू जाई रयी पल्टना में,
उं घर क शान छैं।
साल म जब उं घर औनी,
घर म बहार छाई जैं ।।
म्येरी बुआ क काम छू,
हम नाणा कै पढ़ौना।
खालि टैम में हम सबूं क,
काम छू सिर्फ खेलणा।।
आपणी भै- बणी में,
मैं सबूं है नाण छूं।
माया लुटौणी मैं में भौते ,
मैं सबूं क प्राण छूं।।
स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
मूलनिवासी: हल्द्वानी, नैनीताल।
उत्तराखंड।
Awesome👍
ReplyDeleteThank you.
Deleteजी,,, धन्यवाद 🙏
ReplyDeleteमीठी बोली । बङी रिझौनी !
ReplyDeleteहोई,,,, सही कौ तुमुल।
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