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Tuesday 21 June 2022

बाल कविता: गोपी

नान- नानु भल- भलौ,

थ्वौप जसौ भौ छू मैं।

लाड़िल मैं घर भरी कौ,

सूपी गूं क गोपी छू मैं।।


सिद- साध छैं आमा- बूबू ,

बंधि छैं उनरी मायाजाव में। 

खाट में बैठि द्यैखि रौनी, 

हम नाण, उनर पराण छैं।


उठ इजा- ठुल बा थै कुणी,

उं, घरा क धुरी छैं।

उनुल बटोव रखि राखौ,

हमरि घर- परिवार कैं।।


रत्तै, दौफर, और ब्यखुली कैं,

म्येरी काखियां रौनी चूल्याण में।

भल- भलो, रसिल खाणु बणौनी,

रस्याखाण क उन किरसाण छैं।। 


गोरू- बछां क काम- धाम,

ठुलि इजा, इजा क नाम छू। 

काका द्येखैणीं खेत- पाति।

परिवार में बंटि काम छू।।


बोज्यू जाई रयी पल्टना में,

उं घर क शान छैं।

साल म जब उं घर औनी, 

घर म बहार छाई जैं ।।


म्येरी बुआ क काम छू,

हम नाणा कै पढ़ौना।

खालि टैम में हम सबूं क,

काम छू सिर्फ खेलणा।।


आपणी भै- बणी में, 

मैं सबूं है नाण छूं।

माया लुटौणी मैं में भौते ,

मैं सबूं क प्राण छूं।।


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

मूलनिवासी: हल्द्वानी, नैनीताल।

उत्तराखंड।

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