कोरोना काल क टैम छू,
चैत्र क यौ महैंण छू।
नाण-तिनौं क नैं क्वै चिचाट है रौ,
गूं भरि में बड़ उदेख छै रौ।
अ- आ, क- ख, पढ़नें- पढ़नें,
मधुलि दबड़ है भ्यार कै द्यैखनें।
द्येखि जालि, कभै परुली भ्यार फन,
शान-शान में बात-चित कर लिन।।
इजा क खुटा क धप- धपाट सुणी बेर;
मधुलि सरासर भागी भितेर।
देखि मधुलि क मने क छटपटाट,
ईजा ल मायाजाव क करि तड़तड़ाट।।
च्येली! मन लगै बेर जब तू पढ़लि,
अघिन कै कक्षा में तबै बढ़लि।
माया लुटै बेर समझा मधुलि कै,
द्वी गज क दूरि क फैद बता वीकै।।
समझन में मधुलि ल करि नैं देर,
कुणी, ईजा! अब पढ़न में नैं करुल अबेर।
नई कक्षा क आंखों में स्वीण सजै,
भै गे मधुलि पढ़ कै।।
स्वरचित: मंजू बिष्ट;
गाजियाबाद; उत्तर प्रदेश।
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