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Sunday 28 November 2021

फुरफुरी मार्डना। गीत।

मुखड़ा- हाथ मा रौं मोबाइल, आंख्यू मा चशमा।

आजकला की च्येली, फुरफुरी माॅडर्ना।।२

पगली जाणी, पगली जाणी, खिमिया- मोहना,,, यूं दनिया- सोबना।

जब द्येखैणी बाटा, फुरफुरी माॅडर्ना।।२


१- अंतरा- नौ पाटा घाघेरी, आंगेड़ी भूली गीं।

जीन्स टाॅप पैरी, माॅडर्ना बढ़ी गीं।।,,,नौ,,,२

पगली जाणी, पगली जाणी, खिमिया मोहना,,, यूं दनिया- सोबना।

जब द्येखैणी बाटा, फुरफुरी माॅडर्ना।।२..


मुखड़ा- हाथ मा रौं मोबाइल, आंख्यू मा चशमा।

आजकला की च्येली, फुरफुरी माॅडर्ना।।


२अंतरा- दातुली- कुटई, वलि- पली फैकेंणीं।

स्कूटी मा बैठी, बाजार चल दीणीं।। दातुली,,,२

पगली जाणी, पगली जाणी खिमिया- मोहना,,,, यूं दनिया- सोबना।

जब द्येखैणी बाटा, फुरफुरी माॅडर्ना।।२


मुखड़ा- हाथ मा रौं मोबाइल, आंख्यू मा चशमा।

आजकला की च्येली, फुरफुरी माॅडर्ना।।


३ अंतरा-  रवाट- भाता खाणु मा, नखारा द्यिखोंणी‌। 

मोमो- चाउमीना कै, खूब खै जाणी।। रवाट,,२

पगली जाणी, पगली जाणी खिमिया- मोहना,,, यूं दनिया- सोबना।

जब द्येखैणी बाटा, फुरफुरी माॅडर्ना।।२


मुखड़ा- हाथ मा रौं मोबाइल, आंख्यू मा चशमा।

आजकला की च्येली, फुरफुरी माॅडर्ना। २.


सर्वाधिकार सुरक्षित।

स्वरचित- मंजू बोहरा बिष्ट

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

मूल निवासी- हल्द्वानी, नैनीताल।

प्रकाशित।



Monday 25 October 2021

आशा: कहानी

कोरोना क केस दिन पर दिन बढ़ते जाण छी; कोरोनावायरस कै रोकण क बस एक उपाय छी लाकडाउन। आज ब्याखुली कै प्रधानमंत्री ज्यू ल घोषणा कर द्यी, कि २४ मार्च बै १४ अप्रैल तक देश में लाकडाउन रौल। यौ खबर सुणी बाद आशा कि आपणी पड़ौसी किरण ल्यी फिकर और बढ़ गै।  उ आकाश कै चै बेर कुणी! "हे द्याप्तौ! तुम किरण कै यौ कसि दोहरि मार मारण छा। आजि त वीक मैंस क पीपल- पाणी कै महैण दिन लै न्हैं रै। मलि बै यौ लाकडाउन और लागि गौ।" ..... आशा आपुन मनै-मन बुदबुदाणी, "उ दिन गाड़ी क टक्कर ल कतुक घर कुड़ी उज्याड़ि द्यीं।.... मोहन ड्यूटी बै रोज ब्याखुली कै घर औंछी, पत्त न्हैं! उ दिन दुपहरी कै किलै ऐ हुंयौल?,,, काव आफुं में नौं न्हैं लिन कुणी' ठीक कुणी, काव लै बुलै रौ हुन्यौल।,,, ब्याखुली कै औंनों त शायद बच जांण।",,, 


जो कमौनी छी, उ ई छोड़ि बेर न्हैं गौ।..... द्वी नाणी- नानि च्येलियां छैं। कसिक समावनेर भै उ आपूं कै और आपनि च्येलियां कै? वीक मलि बै त आसमानै गिर गो! इतुक नानि उमर में ख्वोरि जो फुट गै ! अब कसिक काटिनेर भै यौ पहाड़ जैसि जिंदगी कै।,,, 'सिबौ लै' कै खनैर भै? और कसिक खनैर भै?...लाकडाउन क खबर सुणि बेर त उ औरे टुटि गै हुन्यैल।,,,,,,


भौत देर तक सोचन बाद आशा ल निर्णय ल्यी कि उ हर हाल में किरण क मदद करैली। उ किरण कै इकलै कभै नैं छोड़ैलि। यौ बाबत उ आपुन नाणा क बाज्यू थै बात करैली। और फिर उचाट मन कै उ खेत में न्हैं गै, गोरू- बाछा ल्ही घा काट लै, और लागि हाथ आघिन दिन क काम लै वील आजै निपटै ल्ही।,,,, 


रात में खाणु खाई बाद आशा ल आपुन मैंस क सामणि जिगर छैड़ी द्यी। आशा क मैंस लै भौतै मयालू मैंस छी। आशा क मन कि बात सुणी बेर उ कुणी, "त्वैल म्येरी मन कि जसि बात कर द्यी, मैं लै द्वी-तीन दिणों बै यौई बात सोचनै छी, कि अब अघिनकै किरण क घर क खर्च कसिक चलनेर भै? तू एक काम कर, राशन क एक पर्च बणा। भोल म्येरी त ड्यूटी छू, पर तू बाजार जाये, और द्विनों परिवार क ल्यी महैण भरी क राशन भर ल्याये। पत्त न्हैं! यौ लाकडाउन कब तक रौल!"... आपुण मैंस क बात सुणी बेर आशा ल राहतै क सांस ल्ही, और दुसर दिण घर क काम- धाम निपटै बेर उ बाजार कै बाट लागि गै। 


बाजार में आज भौत भीड़- भाड़ है रौछी। घंटों लाइन में ठाड़ हैई बाद बड़ राम- राम ल आशा ल बणियै क दुकान बै राशन- पाणि ल्ही, कपड़िये क दुकान बै ५० मीटर कपाड़, और लास्ट में मंडी जाई बेर २० धड़ी आलू,१० धड़ी प्याज और बकाई साग- पात खरिदौ।,,, आशा ल सबै सामान एक बटिये बेर टैंपो में धरौ और घर कै चल द्यी। घर जाण- जाणें आशा कै रात है गैछी।,,,, घर ऐ बेर थ्वाड़ सामान वील अपुण घर में उतारौ,,, और फिर टैंपो ल्ही बेर किरण क घर कै चल दी, टैंपो क आवाज सुणी बेर किरण क द्विनों च्येलियां भ्यार आंगण में ठाड़ि हैं गयीं। आशा और द्विनों च्येलियां ल मिलबेर टैंपो बै सामान निकालौ और भीतेर एक कुण में रख द्यी।,,,,,


उई कमर में किरण लै उदास, निशास लागि एक कुण में भै रौछी, भीतैर को औंना- जाणा वीकै इतुक ल्है होश न्हैं छी। आशा क बुलौण पर किरण स्वीण बै जसि उठी और कुणी "अरे! दीदि तुम?... कब आछा?... बैठो!" और वीक नजर जसै सामान ल भरी झ्वालों में पड़ी, त उ पुछैणी! "दीदी इतुक सकर सामान ल्ही बेर कां बै औंन छां? और कां हुणी जांण छा ?"


“त्वैल आज क समाचार त सुणी हालि हुन्यैल ?"


"होई दीदी।" इतुकै कुण म किरण क आंखों बै आंसू'क तड़तड़ाट है पड़ी। धोती क टुकै ल आपुन आसूं कै पोछते हुए कुणी,"पत्त नैं दीदि मैं कैं क्वै जनमा क कर्मों क दंड मिलैणी"।


आशा, किरण क मुनई कै मुसारते हुए कुणी, "बली लै,,, यौ बखत त्यर मन में कै चल रौ हुन्यौल मैं भली कै समझ सकनूं। लाकडाउन क खबर सुण बेर मैं बेली बै तुमरी बार में सोचणै छी। आज मैं आपुन घर क ल्यी राशन-पाणि ल्यूंहुणी बाज़ार जाणंछी, मैं ल सोचि लगै हाथ तुमर ल्यी लै राशण पाणि ल्यूं। यौ झ्वौला में उई राशन पाणि छू,,,, किरण कै आपुन आंखों में विश्वास न्हीं हुण छी। उ कभी समान कै त कभै आशा क मुखड़ी कै द्यैखणै छी। आशा किरण क मनैं की उथल-पुथल कै समझ गैछी। आशा कुणी! “किरण  मोहन त यौ दुणी कै छोडि बेर न्हैगौ, तू कतुक लै ख्वार मुनव पटक लै अब उ वापिस ओनि न्हैं,,,,अब त्वै ल आपणी यूं नाणियों दगै कमर बांधन छू,,,, और त्वै लै यूं नाणियों कै आघिन कै पावण छू।,,, अब तू हिम्मत बांध बैणा...मैं हमेशा त्यर साथ ठाड़ि छू। 


“एक बात बता? त्येरी सास बतौंछी, म्येरी ब्वारि ल सिलाई- कढ़ाई सबै सीख राखौ। त्वै कैं सिलाई- कढ़ाई ऐंछ”?,,,,


 "दीदी ब्या है पैली सिख त रौछी,, पर! अब सबै भुलि- भालि गयूं"।


"कोई बात न्हैं, पोरखिन बै लाकडाउन लागणों, औनी- जाणी कम है जाल। मैं यौ कपाड़ ल्है रैयूं। तू दुबारा मेहनत कर, और खूब मेहनत कर। जो सिलाई क हुनर त्वै में छी,,,, उ हुनर कै दोबारा निखार।...खेती- पाति तुमरी छू न्हैं। लेकिन सिलाई करिबेर तू एक आत्मनिर्भर सैणी बण सकछी। आपणी दमै ल आपणी च्येलियां कै पाऊ सकछी और द्विनों कै भलि-भलि भांति पढ़े- लिखे सकछी।,,,,,


त्वै कैं त पत्त छू? आस-पास कोई कपाड सिणैनी न्हैं, सब कपाड़ सिणै हों बाजार जाणी।...तू काम त शुरू कर,…..  मैं त्येरी मदद करूंल। मैं गौं- गौं, घर-घर जौंल;,,,, और त्यर सिलाई क प्रचार करुंल। बस, अब तू काम शुरु कर दे”।


मुसीबत क यौ घड़ी में आशा क सहार और वीक बातों ल किरण कै भौते हिम्मत मिली। आपुन ल्यी आशा क मन में इतु सकर फिकर, पीड़ और मायाजाव द्यैखिबेर किरण ल आशा कै कसि बेर अंगवाव भ्येड़ी द्यी। और फिर त उ आपणी डाढ़ कै रोकि नैं पै। उ डाढ़ मारते हुए कुणी, "दीदि यौ टैम में तुम म्यर ल्यी देवी क रुप धरि बेर ऐ रौछा। मैं कैं यौ फिकर ल खै हालि छी, कि मैं आघिन कै करूं? और कसिक आपणी च्येलियां कै पाउं?,,,,,दीदि तुमुल मैं कै सहार दिण क साथ- साथ आघिन कै जिंदगी बितौंण क रास्त लै दिखै हालौ,,,, मैं तुमर यौ एहसान कै"...….आशा ल किरण क गिजां में आपनी आंगुलि रख द्यी,,,, "नैं",,, "आपनी ज़बान में कभै यौ बात झन ल्याये। तू मैं कैं आपणी जिठाणी माणै छी नैं, और दीदि कौंछी। आज बै तू मैं कै बस आपणी दीदि मानियै,,,, दीदि, बैणी पर कभै एहसान नैं करैनी... समझ गैछी।,,,, एक टैम छी, जब त्येरी सासु ल लै हमैरी भौत मदद कर रखै।,,, बस,,, यौ त जीवन में अल्ट- पल्ट छू। आज म्येरी बारि, त भोल त्येरी बारि।"


“तू बस म्येरी एक बात माणि लै, अब आघिन कै अपुण यूं आंसू कै कभै झन खड़िये, अब आपणी च्येलियां क ईज और बाज्यू त्वैलै बणन छू।,,, और त्यर अपुन खुटां में ठाड़ हुन लै अब भौत जरूरी छू।,,, जब तू केई काम करैली तबै तू आपुन च्येलियां क जिंदगी में एक "नई किरण" बन पालि।"... माणैली नैं म्येरी बात।" किरण ल माठु- माठ "होई" में आपणी मुनई कै हिलै दी।,,, 


आशा क बातों ल किरण कै भौत ढांढस और हिम्मत मिली और किरण क डाढ़ थम गैछी। थोड़ी देर इथा- उथा बात करि बेर आशा ल किरण क मुखड़ी में एक नज़र मारि। किरण क मुखड़ी में चिंता क लकीर कुछ कम है गैछी। फिर उ किरण थै कुणी, रात भौत हैगे, अब मैं लै घर जांणू। तू लै खांणू बणैं लै, और टैम पर खै- पी ल्यियौ।,,,, और फिर आशा आपुन घर कै बाट लागि गै।.. किरण आंगण में ठाढ़ है बेर आशा कै घर जाण देखते रै।,,,,वील आपनी सासु और मैस क मुखड़ी बै आशा क बार में भौत सुण रौछी,…… पर सांचि में आज वील साक्षात देवी क दर्शन करौ,,,, और फिर किरण माठु- माठु कदम बढ़े बेर आपुण भीतेर ऐ गै। वील द्वार में सांगव लगाईं, और फिर आपणी द्वीनों च्येलियों कै आपुण क्वाठ में भर ल्ही।


आपुण घर पहुंच बेर आशा ल मास्क उतारौ, और सबूं है पैली नाण- ध्वैंण करौ। नें- ध्वै बेर आशा ल गरमागरम चहा बणैं, और फिर चहा क गिलास ल्यी बेर उ खाट में भै गै। किरण क ल्यी वीक मन में जो फिकर है रौछी, उ फिकर अब थ्वाड़ कम है गौछी।....... पर देश में कोरोना क बढ़ते केश द्यैख बेर आशा क शांत मुखड़ी में फिर चिंता क रेखा द्यीखींण लागि।


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

मूल निवासी- हल्द्वानी, 

नैनीताल, उत्तराखंड।



Wednesday 22 September 2021

जा रे,,,जा रे चंदा आपणी देश मा। कुमाऊनी गीत

जा रे, जा रे चंदा, आपणी देश मा।

बैठी रै म्यर सुवा, घुंघटे की आड़ मा।।

त्येरी नज़र पड़ेली, सुवा की मुखड़ी मा।

ज्यों नज़र पड़ेली सुवा की मुखड़ी मा।।

जली भुनी जालै, आपणी देश मा। 

तू,तो जली भुनी जालै, आपणी देश मा।।


(१) कपाला में बिंदी चमकने चमाचम।..२

नाक में नथुली, दमकने दमादम।।२..

जब द्यैखलै चंदा, सुवा कति बाना।

ज्यों द्यैखलै चंदा, सुवा म्येरी बाना।।

जली भुनी जालै, आपणी देश मा।

 तू,तो जली- भुनी जालै,आपणी देश मा।।


जा रे,जा रे चंदा, आपणी देश मा।

बैठी रै म्यर सुवा, घुंघटे की आड़ मा।। 


(२) आंखों में काजला, लाली छू ओंठ मा। २..

सुवा देखी बढ़ गे, दिले की धड़कना।। म्येरी, २..

जब द्यैखलै चंदा, सुवा कै हंसणा।

ज्यों द्यैखलै चंदा, मुलमुलौ हंसणा।।

जली- भुनी- जालै, आपणी देश मा। 

तू,तो जली- भुनी जालै, आपणी देश मा।।


जा रे,,,, जा रे चंदा, आपणी देश मा,,,,

बैठी रै म्यर सुवा, घुंघटे' की आड़ मा,,,,


(३) खन-खन, खन- खन चूड़ी, खनकणी हाथ मा। २..

छम- छम, छम- छम झांवर, बाजणी खुटा मा।। २..

जब सुणलै चंदा, झांवर की रुनझुना।

ज्यों सुणलै चंदा झांवर की रुनझुना।।

जलि- भुनी जाले, आपणी देश मा। 

तू, तो जलि- भुनी जाले आपणी देश मा।।


जा रे, जा रे चंदा, आपणी देश मा।

बैठी रै म्यर सुवा, घुंघटे की आड़ मा।।२.


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

मूल निवासी- हल्द्वानी, नैनीताल। उत्तराखंड।

सर्वाधिकार सुरक्षित।

Sunday 15 August 2021

ऊंच्च- निचा डांड्यू' को म्येरो पहाड़ा। कुमाऊनी गीत

ऊंच्च- निचा डांड्यूं को  म्येरो पहाड़ा,,,

यौ,,,, म्येरो पहाड़ा,

धन- धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,

मैं जनमी पहाड़ा,,,मैं जनमी पहाड़ा,,,मैं जनमी पहाड़ा,,,मैं जनमी पहाड़ा,,,

ओहो,,,धन- धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,


मुलमुलौ हमर मुलुका, मीठी- मीठी छू बाणी,,,, 

कति मीठी छू बाणी,,,,

 ठंडी-ठंडी हाउ चली रैं, ठंडो- मिठो पाणी,,,,२

सीध- साध छैं मनखी भुली, म्येरी पहाड़ा,,,, 

यौ,,, म्येरी पहाड़ा,,

धन- धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,२


ऊंच्च- निचा डांड्यू' को म्येरो पहाड़ा,,, 

यौ,,,, म्येरो पहाड़ा,

धन- धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,२


डान- काना में मां' क धाम, बैठीं रैं मां स्यूं मा,,,,,,

बैठीं रैं मां स्यूं मा,,,

सब देवों की छाया- दाया, म्यर उत्तराखंड मा,,,,,२

घर मा लागैं जागरी, पूजणी डंगरिया,,,

नचौंणी डंगरिया,,,,

धन- धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,२


ऊंच्च- निचा डांड्यू' को म्येरो पहाड़ा,,, 

यौ,,,, म्येरो पहाड़ा,,,,,

धन धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,२


गाड़, गद्यरा, स्रोत बणी, नदी- रेवाड़ा,,,,,, 

हो,,,नदी- रेवाड़ा,,,,

संगमे की डुबकी करें, हमरी उद्धारा,,,२

पाप नाशनी, पुण्य दायिनी, गंगा की धारा,,,, 

यौ गंगे की धारा,,,,,

धन धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,२


ऊंच्च- निचा डांड्यू' को म्येरो पहाड़ा,,, 

यौ,,,, म्येरो पहाड़ा,,,,

धन धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,२


४- धन छैं भागि म्यर पराणा, धनि छू म्येरी ज्यूंनी,,,,,

धनि छू म्येरी ज्यूंनी,,,, 

क्वै जनमा पुन्यु प्रतापा, देवभूमि में जनमी,,,,२

जन्म भूमि, कर्म भूमि, म्येरी पहाड़ा,,,

यौ,,, म्येरी पहाड़ा,,,,

धन धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,२


ऊंच्च- निचा डांड्यू को यौ म्येरो पहाड़ा,,, 

यौ,,,, म्येरो पहाड़ा,,,,

धन धन म्यर भाग छैं, मैं जनमी पहाड़ा,,,२


स्वरचित मंजू बिष्ट, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

(मूल निवासी-हल्द्वानी नैनीताल।)

सर्वाधिकार सुरक्षित।

Sunday 1 August 2021

उड़ कौवा तू निकर कांव कांव रे: कुमाऊनी लोकगीत

उड़ कौवा तू निकर कांव- कांव रे,,,

मैं कैणी पत्त छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,


म्येरी मनैं की बात तू, किलै न्हीं जाणनैं,,,,

तै कै मी समझैरयूं, तू किलै न्हीं समझनै,,,

मैं तो नाचनैयू, किलै तू न्हीं नाचनयै,,,,

मैं किलै न्हीं जाणरयूं, म्यर परदेशी आमुरे,,,


उड़ कौवा तू निकर कांव- कांव रे,,,

मैं कैणी पत्त छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,


दूर छू परदेशी जैक मैं बाट देखौ छी,,,

फूल तोड़ बेर बाट कणी, मैं तो रोज सजों छी,,,,

सजी-धजी बेर जैक लिजी मैं यथां- उथां दौड़ै छी,,,

मैं आज खुशी छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,


उड़ कौवा तू निकर कांव- कांव रे,,,

मैं कैणी पत्त छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,


मैं न्हीं जाणन बात कैकणी बतूंला,,,,

म्यर घर'क आघिन छै मैं तै कैणी सुणूंला,,,,

पैली तू आपुण सब दगड़ियों कै बुलै ला रे,,,,

मैं गीत गै द्यूंला, तू ढोल बजा रे,,,,


उड़ कौवा तू निकर कांव- कांव रे,,,

मैं कैणी पत्त छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,


उत्तराखंड प्रचलित कुमाऊनी लोकगीत २८



Saturday 31 July 2021

मालूसारा बसन्ती तू हिट दे चटाचट: कुमाऊनी लोकगीत

मालूसारा बसन्ती तू हिट दे चटाचट,,,, 

किले जै छैं पछीना तू हिट दे फटाफट,,,,

हवा चली रै यौ मेरो पिछौड़ उड़ल,,,,

पैसा न्हांथिन म्यर पासा मैं कां बै बडूल,,,,


तू मी हुणी तू साड़ी बिलौज बणैं दै,,,,

म्येरी ईजू की माया म्यर मैंत पुजै दै,,,,,

मैं त्यी सुणी पै साड़ी बिलौज बड़ूंल,,,

त्येरी ईजू की माया त्यर मैंत पूजूंल,,,,


मालूसारा बसन्ती तू हिट दे चटाचट,,,, 

किले जै तैं पछीना तू हिट दे फटाफट,,,,


तू मी हुणी झुमकनी नथुली बणैं दै,,,,

मैं लीखूंल हो चिठ्ठी, स्कूल पढ़े दै,,,,

मी त्यी हुणी झुमकनी नथुली बडूंल,,,

प्रौढ़ शिक्षा त्यी हुणी स्कूल खोलूंल,,,,


मालूसारा बसन्ती तू हिट दे चटाचट,,,, 

किले जै छैं पछीना तू हिट दे फटाफट,,,,


तू मी हुणी कानों का झुमका बणैं दै,,,,,

रानी खेत ल्ही जै बेर फिल्म दिखै दै,,,, 

मैं त्यी हुणी कानों का झुमका बड़ूंल,,,,

रतन पैलेस ल्ही जै बेर फिल्म द्यैखूंल,,,,


मालूसारा बसन्ती तू हिट दे चटाचट,,,, 

किले जै तैं पछीना तू हिट दे फटाफट,,,,


उत्तराखंड प्रचलित कुमाऊनी लोकगीत संग्रह-२७


 



Friday 30 July 2021

बार घंटे की ड्यूटी म्येरी, तंख्वा ढ़ाई हजारा: कुमाऊनी प्रचलित लोकगीत, संग्रह।

 बार (१२) घंटे की ड्यूटी म्येरी, तनख्वा ढ़ाई हजारा,,,

यो पापी परदेश में ईजू, न्हीं हुणौं गुज़ारा,,,,


बाज्यू कौछी पढ़ा- लिखा, भोल द्वी रवाट कमै खाला,,,

नौकरी' त मिलण न्हीं थैं, छ्वट- म्वट रोजगार कर ल्यला,,,,

स्कूल' क बाट छोड़ी बेर, मैं घुमैं छी बजारा,,,,,

यो पापी परदेश में ईजू, न्हीं हुणौं गुज़ारा,,,,


बार घंटे की ड्यूटी म्येरी, तनख्वा ढ़ाई हजारा,,,

यो पापी परदेश में ईजू, न्हीं हुणौं गुज़ारा,,,,


रात- दिन काम करनूं, ठुल सैप 'की डांट खनूं,,,,

कभै एक टैम, कभै द्वी टैम, कै दिना भूखै स्यी जनूं,,,,,

आज याद औनी मैं कै, बचपन' क नखारा,,,,,

यो पापी परदेश में ईजू, न्हीं हुणौं गुज़ारा,,,,


बार घंटे की ड्यूटी म्येरी, तनख्वा ढ़ाई हजारा,,,

यो पापी परदेश में ईजू, न्हीं हुणौं गुज़ारा,,,,


कभी घरै' की, कभी ड्यूटी' की फिकर लागै, न्हीं मिलैणी छुट्टी,,,

पराई भेंट नौकरी म्येरी, न्हैं मालूम कब जैली छूटी,,,,

अब तौ ईजू घर ऐ जौं छौ, गोरु चरुल बकरा,,,,,

यो पापी परदेश में ईजू, न्हीं हुणौं गुज़ारा,,,,


बार घंटे की ड्यूटी म्येरी, तनख्वा ढ़ाई हजारा,,,

यो पापी परदेश में ईजू, न्हीं हुणौं गुज़ारा,,,,


उत्तराखंड प्रचलित कुमाऊनी लोकगीत संग्रह- २६









Thursday 29 July 2021

हिलमा चांदी कौ बटना: कुमाऊनी प्रचलित लोकगीत संग्रह।

हिलमा,,,, हिलमा चांदी कौ बटना,,,,

रैंगे दिल में तुमरी रटना,,,,

पान खाई, सुपारी खाई, अमला बीड़ी को,,,,

को छौ तेरो कौ छौ मेरो, दरद पीढ़ी को,,,,

पान खाई, सुपारी खाई, अमला बीड़ी को,,,,

को छौ तेरो कौ छौ मेरो, दरद पीढ़ी को,,,,


हिलमा,,,,,हिलमा चांदी कौ बटना,,,,

रैंगे दिल में तुमरी रटना,,,,


घुगुती लै घोल दिनौ हरियौ जंगला,,,,,

त्येरी म्येरी भेंट ह्वैली छनचर मंगला,,,,,

घुगुती लै घोल दिनौ हरियौ जंगला,,,,,,

त्येरी म्येरी भेंट ह्वैली छनचर मंगला,


हिलमा,,,, हिलमा चांदी कौ बटना,,,,

रैंगे दिल में तुमरी रटना,,,,


उकयाली कौ भौटिया घ्वौड़ा, मैदानों कौ हाथी,,,

तू मैकैई भूली गई, धन मेरी छाती,,,,

उकयाली कौ भौटिया घ्वौड़ा, मैदानों कौ हाथी,,,

तू मैकैई भूली गई, धन मेरी छाती,,,,


हिलमा,,,, हिलमा चांदी कौ बटना,,,,

रैंगे दिल में तुमरी रटना,,,,


उत्तराखंड कुमाऊनी प्रचलित लोकगीत संग्रह-२५


Wednesday 28 July 2021

छाना बिलौरी कै भल मान्यौं: कुमाऊनी प्रचलित लोकगीत, संग्रह।

छाना बिलौरी कै भल मान्यौं, छाना बिलौरी का डाना,,,

दीजिया बाज्यू छाना बिलौरी, न्हीं लागना हो घामा,,,,

झूठी यो कै लै बात कै दी छौ, खाली करौ बदनामा,,,

दीजिया बाज्यू छाना बिलौरी, न्हीं लागना हो घामा,,,,

छाना बिलौरी कै भल मान्यौं, छाना बिलौरी का डाना,,,



ओ जाना बिलौरी का मैंस छैं भल छै भला ज्वाना,,,,

भल छै बौज्यू चेली बेटियां, च्याल तैं बोज्यू बाना,,,,

दीजिया बाज्यू छाना बिलौरी, न्हीं लागना हो घामा,,,,

छाना बिलौरी कै भल मान्यौं, छाना बिलौरी का डाना,,,


कुटयी दातुली दान दीदिया, कर दिया कन्यादाना,,,,

हो,,, जिम्मेदार की च्येली छौ बाज्यू, काम की कै शरमा,,,,

दीजिया बाज्यू छाना बिलौरी, न्हीं लागना हो घामा,,,,

छाना बिलौरी कै भल मान्यौं, छाना बिलौरी का डाना,,,


रंगीला मैसा सैणी तैं भला, बुड़ रंगीला ज्वाना,,,,

गीत बातों का बड़ा रंगीला, सेंणिया भैंसा नाणा,,,,

दीजिया बाज्यू छाना बिलौरी, न्हीं लागना हो घामा,,,,

छाना बिलौरी कै भल मान्यौं, छाना बिलौरी का डाना,,,


उखल कुटुला घास काटुला, सब करूला कामा,,,,

सासू सौरे की सेवा करूंल, खूब कमूल नामा,,,

दीजिया बाज्यू छाना बिलौरी, न्हीं लागना हो घामा,,,,

छाना बिलौरी कै भल मान्यौं, छाना बिलौरी का डाना,,,


उत्तराखंड कुमाऊनी प्रचलित लोकगीत संग्रह- २४

Tuesday 27 July 2021

अवधपुरी: आलेख

बरसों' क लम्ब इंतजार' क बाद आज अवधपुरी में ५ अगस्त २०२०,  बुधवार, दोपहर १२:३० बजी प्रधानमंत्री मोदी ज्यूल आपुण हाथो'ल रजत शिला धरबेर राम मंदिर की नींव रखी।

हमर देश में आज सबै मनखियां कोठी में भौते ठंडी पड़ौ छ। ५०० साल इंतजार बाद आज यो दिन द्यौखण कै मिलो। हमर देश कई मनखियोंक अथाह संघर्ष और मेहनत फल छू। और आज कई वर्षों बाद मोदी ज्यूल और योगी ज्यूल आपुण सूझ- बूझ' ल राम मंदिर'क निर्माण' के काम शुरू कर ह्वैली।  हमर देशों क सबै महंतौ, और  मनखियों कै कोटि-कोटि धन्यवाद।
  
स्वरचित मंजू बिष्ट,
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

Monday 26 July 2021

कइ-कइ: बाल कहानी

गोपी आठ साल'क एक नान छू। उ बार- बार आपणी ईज थै कुण लागि रौछी; "ईजा मैं' कैं भ्यार बै गड़गड़ाट जैसि सुनाई दिणै। मैं' कै लागणौ, भ्यार आंंगण में कोई छू?,,,,, ईजा! ओ ईजा! ,,, एक बार द्वार खोलि बैर भ्यार कै द्यैख नै"!,,,,,

आज रत्तै बै झुण-मुण द्यौ लागि रौछी, और ठंड लै भौत ह्वऐ  रौछी। गोपी'क ईज कमला गोरू- बछां'क और खाणु-पिण'क काम- धाम निपटै बेर टैम पर खातड़़ी में पसरी गै।,,,,,,,
यो ठंड़ में ह्वीक खातड़ी बै भ्यार निकलण'क बिल्कुल'लै मन न्हैं रौछी। लेकिन गोपी'क बार- बार कुण पर बड़ राम- राम'ल ह्वील द्वार खोलि, और भ्यार आंगण में आपणी नज़र घुमैं।,,,,,,, आंगण में एक कुकुर'क प्वौथ द्यौ में भीगण लागि रौछी; और जाड़'ल कांपणौं छी। और उ प्वौथ आपु कै द्यौ ह्वै बचूंण'क ली कोई कुण ढूढ़णौ छी,,,,,,,
प्वौथ में नज़र पड़ते ही गोपी उ प्वौथ'क तरफ भागौ।,,,,,, गोपी कै भ्यार कै जाण देखि बेर कमला कुणी! "  गोपी रुक  !,,,, कांहुणी जाण छै च्यला?,,, भ्यार भौत द्यौ हैरौ,,,, थ्वाड़ लै भीज जालै त, जर ऐ जाल!",,,,,,
गोपी आपुण ईजा'क आंचव पकड़ बेर कुण लागौ! "ईजा द्यैख नै! उ कुकुर'क प्वौथ में लै' त प्राण छैं, यो द्यौ में भीज बेर उ प्वौथ जाड़'ल कांपण लागि रौ और कुकाट करणौ,,,, ईजा उ प्वौथ बोलि न्है सकणैं
,,,, पर उ हमूं थै मदद मांगणौं।,,,,, ईजा उ प्वौथ कै द्यैख बेर मैं'के भौते कइ-कइ लागणैं।",,,,, और यो कुण- कुणै गोपी खुद लै जोर- जोर'ल डाढ़ मारण लागौ।,,,,,
गोपी'क डढ़ाडाढ़ द्यैखी बेर कमला कुणी!  "तू‌ थ्वाड़ रूक और आपुण डाढ़ बंद कर, मैं छात लिबेर उंनू"।,,,,,,,,
कमला जसिकै छात ल्ही बैैर औने छी, गोपी'ल दबंगों कै छात पकड़ी और भ्यार कै दौडौ, और सरासर प्वौथ कै उठै बेर आपुण घर'क भीतेर ल्ही आ।,,,, गोपी'ल उ कुकुर'क प्वौथ कै कपड़ै'ल भलि- भलि कै पोछि-पाछि बेर सुखै दी।,,,, तब तक कमला लै एक भाण में कुन-कुनौ दूध बणै बेर लै गौछी ,,,, गोपी'ल बड़ खुशी ह्वै बेर उ प्वौथ कै दूध पिवा,,,,,, और फिर एक छापरी में गुदैड़ी बिछै बेर उ प्वौथ कै आराम'ल बिठै दे।,,,,,
गोपी'क मन में उ कुकुर'क प्वौथ'क ली इतुक सकर दया भाव, पीड़ और माय जाव द्येख बेर कमला'ल  गोपी' कै आपणी क्वोठी ह्वै लगै ल्ही।

स्वरचित: मंजू बिष्ट,
गाजियाबाद,
उत्तर प्रदेश।

कुमाऊनी भजन: माता रानी

  मुखड़ा- ऊंच- नीचा डांड्यू कै करी पार। मैं आयूं मैया त्यर द्वार मा।। दर्शन तू दी जा इक बार। ऐजा मैया बैठि शेर मा।।   कोरस- ऐजा मैया बैठि शे...