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Monday 25 October 2021

आशा: कहानी

कोरोना क केस दिन पर दिन बढ़ते जाण छी; कोरोनावायरस कै रोकण क बस एक उपाय छी लाकडाउन। आज ब्याखुली कै प्रधानमंत्री ज्यू ल घोषणा कर द्यी, कि २४ मार्च बै १४ अप्रैल तक देश में लाकडाउन रौल। यौ खबर सुणी बाद आशा कि आपणी पड़ौसी किरण ल्यी फिकर और बढ़ गै।  उ आकाश कै चै बेर कुणी! "हे द्याप्तौ! तुम किरण कै यौ कसि दोहरि मार मारण छा। आजि त वीक मैंस क पीपल- पाणी कै महैण दिन लै न्हैं रै। मलि बै यौ लाकडाउन और लागि गौ।" ..... आशा आपुन मनै-मन बुदबुदाणी, "उ दिन गाड़ी क टक्कर ल कतुक घर कुड़ी उज्याड़ि द्यीं।.... मोहन ड्यूटी बै रोज ब्याखुली कै घर औंछी, पत्त न्हैं! उ दिन दुपहरी कै किलै ऐ हुंयौल?,,, काव आफुं में नौं न्हैं लिन कुणी' ठीक कुणी, काव लै बुलै रौ हुन्यौल।,,, ब्याखुली कै औंनों त शायद बच जांण।",,, 


जो कमौनी छी, उ ई छोड़ि बेर न्हैं गौ।..... द्वी नाणी- नानि च्येलियां छैं। कसिक समावनेर भै उ आपूं कै और आपनि च्येलियां कै? वीक मलि बै त आसमानै गिर गो! इतुक नानि उमर में ख्वोरि जो फुट गै ! अब कसिक काटिनेर भै यौ पहाड़ जैसि जिंदगी कै।,,, 'सिबौ लै' कै खनैर भै? और कसिक खनैर भै?...लाकडाउन क खबर सुणि बेर त उ औरे टुटि गै हुन्यैल।,,,,,,


भौत देर तक सोचन बाद आशा ल निर्णय ल्यी कि उ हर हाल में किरण क मदद करैली। उ किरण कै इकलै कभै नैं छोड़ैलि। यौ बाबत उ आपुन नाणा क बाज्यू थै बात करैली। और फिर उचाट मन कै उ खेत में न्हैं गै, गोरू- बाछा ल्ही घा काट लै, और लागि हाथ आघिन दिन क काम लै वील आजै निपटै ल्ही।,,,, 


रात में खाणु खाई बाद आशा ल आपुन मैंस क सामणि जिगर छैड़ी द्यी। आशा क मैंस लै भौतै मयालू मैंस छी। आशा क मन कि बात सुणी बेर उ कुणी, "त्वैल म्येरी मन कि जसि बात कर द्यी, मैं लै द्वी-तीन दिणों बै यौई बात सोचनै छी, कि अब अघिनकै किरण क घर क खर्च कसिक चलनेर भै? तू एक काम कर, राशन क एक पर्च बणा। भोल म्येरी त ड्यूटी छू, पर तू बाजार जाये, और द्विनों परिवार क ल्यी महैण भरी क राशन भर ल्याये। पत्त न्हैं! यौ लाकडाउन कब तक रौल!"... आपुण मैंस क बात सुणी बेर आशा ल राहतै क सांस ल्ही, और दुसर दिण घर क काम- धाम निपटै बेर उ बाजार कै बाट लागि गै। 


बाजार में आज भौत भीड़- भाड़ है रौछी। घंटों लाइन में ठाड़ हैई बाद बड़ राम- राम ल आशा ल बणियै क दुकान बै राशन- पाणि ल्ही, कपड़िये क दुकान बै ५० मीटर कपाड़, और लास्ट में मंडी जाई बेर २० धड़ी आलू,१० धड़ी प्याज और बकाई साग- पात खरिदौ।,,, आशा ल सबै सामान एक बटिये बेर टैंपो में धरौ और घर कै चल द्यी। घर जाण- जाणें आशा कै रात है गैछी।,,,, घर ऐ बेर थ्वाड़ सामान वील अपुण घर में उतारौ,,, और फिर टैंपो ल्ही बेर किरण क घर कै चल दी, टैंपो क आवाज सुणी बेर किरण क द्विनों च्येलियां भ्यार आंगण में ठाड़ि हैं गयीं। आशा और द्विनों च्येलियां ल मिलबेर टैंपो बै सामान निकालौ और भीतेर एक कुण में रख द्यी।,,,,,


उई कमर में किरण लै उदास, निशास लागि एक कुण में भै रौछी, भीतैर को औंना- जाणा वीकै इतुक ल्है होश न्हैं छी। आशा क बुलौण पर किरण स्वीण बै जसि उठी और कुणी "अरे! दीदि तुम?... कब आछा?... बैठो!" और वीक नजर जसै सामान ल भरी झ्वालों में पड़ी, त उ पुछैणी! "दीदी इतुक सकर सामान ल्ही बेर कां बै औंन छां? और कां हुणी जांण छा ?"


“त्वैल आज क समाचार त सुणी हालि हुन्यैल ?"


"होई दीदी।" इतुकै कुण म किरण क आंखों बै आंसू'क तड़तड़ाट है पड़ी। धोती क टुकै ल आपुन आसूं कै पोछते हुए कुणी,"पत्त नैं दीदि मैं कैं क्वै जनमा क कर्मों क दंड मिलैणी"।


आशा, किरण क मुनई कै मुसारते हुए कुणी, "बली लै,,, यौ बखत त्यर मन में कै चल रौ हुन्यौल मैं भली कै समझ सकनूं। लाकडाउन क खबर सुण बेर मैं बेली बै तुमरी बार में सोचणै छी। आज मैं आपुन घर क ल्यी राशन-पाणि ल्यूंहुणी बाज़ार जाणंछी, मैं ल सोचि लगै हाथ तुमर ल्यी लै राशण पाणि ल्यूं। यौ झ्वौला में उई राशन पाणि छू,,,, किरण कै आपुन आंखों में विश्वास न्हीं हुण छी। उ कभी समान कै त कभै आशा क मुखड़ी कै द्यैखणै छी। आशा किरण क मनैं की उथल-पुथल कै समझ गैछी। आशा कुणी! “किरण  मोहन त यौ दुणी कै छोडि बेर न्हैगौ, तू कतुक लै ख्वार मुनव पटक लै अब उ वापिस ओनि न्हैं,,,,अब त्वै ल आपणी यूं नाणियों दगै कमर बांधन छू,,,, और त्वै लै यूं नाणियों कै आघिन कै पावण छू।,,, अब तू हिम्मत बांध बैणा...मैं हमेशा त्यर साथ ठाड़ि छू। 


“एक बात बता? त्येरी सास बतौंछी, म्येरी ब्वारि ल सिलाई- कढ़ाई सबै सीख राखौ। त्वै कैं सिलाई- कढ़ाई ऐंछ”?,,,,


 "दीदी ब्या है पैली सिख त रौछी,, पर! अब सबै भुलि- भालि गयूं"।


"कोई बात न्हैं, पोरखिन बै लाकडाउन लागणों, औनी- जाणी कम है जाल। मैं यौ कपाड़ ल्है रैयूं। तू दुबारा मेहनत कर, और खूब मेहनत कर। जो सिलाई क हुनर त्वै में छी,,,, उ हुनर कै दोबारा निखार।...खेती- पाति तुमरी छू न्हैं। लेकिन सिलाई करिबेर तू एक आत्मनिर्भर सैणी बण सकछी। आपणी दमै ल आपणी च्येलियां कै पाऊ सकछी और द्विनों कै भलि-भलि भांति पढ़े- लिखे सकछी।,,,,,


त्वै कैं त पत्त छू? आस-पास कोई कपाड सिणैनी न्हैं, सब कपाड़ सिणै हों बाजार जाणी।...तू काम त शुरू कर,…..  मैं त्येरी मदद करूंल। मैं गौं- गौं, घर-घर जौंल;,,,, और त्यर सिलाई क प्रचार करुंल। बस, अब तू काम शुरु कर दे”।


मुसीबत क यौ घड़ी में आशा क सहार और वीक बातों ल किरण कै भौते हिम्मत मिली। आपुन ल्यी आशा क मन में इतु सकर फिकर, पीड़ और मायाजाव द्यैखिबेर किरण ल आशा कै कसि बेर अंगवाव भ्येड़ी द्यी। और फिर त उ आपणी डाढ़ कै रोकि नैं पै। उ डाढ़ मारते हुए कुणी, "दीदि यौ टैम में तुम म्यर ल्यी देवी क रुप धरि बेर ऐ रौछा। मैं कैं यौ फिकर ल खै हालि छी, कि मैं आघिन कै करूं? और कसिक आपणी च्येलियां कै पाउं?,,,,,दीदि तुमुल मैं कै सहार दिण क साथ- साथ आघिन कै जिंदगी बितौंण क रास्त लै दिखै हालौ,,,, मैं तुमर यौ एहसान कै"...….आशा ल किरण क गिजां में आपनी आंगुलि रख द्यी,,,, "नैं",,, "आपनी ज़बान में कभै यौ बात झन ल्याये। तू मैं कैं आपणी जिठाणी माणै छी नैं, और दीदि कौंछी। आज बै तू मैं कै बस आपणी दीदि मानियै,,,, दीदि, बैणी पर कभै एहसान नैं करैनी... समझ गैछी।,,,, एक टैम छी, जब त्येरी सासु ल लै हमैरी भौत मदद कर रखै।,,, बस,,, यौ त जीवन में अल्ट- पल्ट छू। आज म्येरी बारि, त भोल त्येरी बारि।"


“तू बस म्येरी एक बात माणि लै, अब आघिन कै अपुण यूं आंसू कै कभै झन खड़िये, अब आपणी च्येलियां क ईज और बाज्यू त्वैलै बणन छू।,,, और त्यर अपुन खुटां में ठाड़ हुन लै अब भौत जरूरी छू।,,, जब तू केई काम करैली तबै तू आपुन च्येलियां क जिंदगी में एक "नई किरण" बन पालि।"... माणैली नैं म्येरी बात।" किरण ल माठु- माठ "होई" में आपणी मुनई कै हिलै दी।,,, 


आशा क बातों ल किरण कै भौत ढांढस और हिम्मत मिली और किरण क डाढ़ थम गैछी। थोड़ी देर इथा- उथा बात करि बेर आशा ल किरण क मुखड़ी में एक नज़र मारि। किरण क मुखड़ी में चिंता क लकीर कुछ कम है गैछी। फिर उ किरण थै कुणी, रात भौत हैगे, अब मैं लै घर जांणू। तू लै खांणू बणैं लै, और टैम पर खै- पी ल्यियौ।,,,, और फिर आशा आपुन घर कै बाट लागि गै।.. किरण आंगण में ठाढ़ है बेर आशा कै घर जाण देखते रै।,,,,वील आपनी सासु और मैस क मुखड़ी बै आशा क बार में भौत सुण रौछी,…… पर सांचि में आज वील साक्षात देवी क दर्शन करौ,,,, और फिर किरण माठु- माठु कदम बढ़े बेर आपुण भीतेर ऐ गै। वील द्वार में सांगव लगाईं, और फिर आपणी द्वीनों च्येलियों कै आपुण क्वाठ में भर ल्ही।


आपुण घर पहुंच बेर आशा ल मास्क उतारौ, और सबूं है पैली नाण- ध्वैंण करौ। नें- ध्वै बेर आशा ल गरमागरम चहा बणैं, और फिर चहा क गिलास ल्यी बेर उ खाट में भै गै। किरण क ल्यी वीक मन में जो फिकर है रौछी, उ फिकर अब थ्वाड़ कम है गौछी।....... पर देश में कोरोना क बढ़ते केश द्यैख बेर आशा क शांत मुखड़ी में फिर चिंता क रेखा द्यीखींण लागि।


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

मूल निवासी- हल्द्वानी, 

नैनीताल, उत्तराखंड।



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