उड़ कौवा तू निकर कांव- कांव रे,,,
मैं कैणी पत्त छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,
म्येरी मनैं की बात तू, किलै न्हीं जाणनैं,,,,
तै कै मी समझैरयूं, तू किलै न्हीं समझनै,,,
मैं तो नाचनैयू, किलै तू न्हीं नाचनयै,,,,
मैं किलै न्हीं जाणरयूं, म्यर परदेशी आमुरे,,,
उड़ कौवा तू निकर कांव- कांव रे,,,
मैं कैणी पत्त छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,
दूर छू परदेशी जैक मैं बाट देखौ छी,,,
फूल तोड़ बेर बाट कणी, मैं तो रोज सजों छी,,,,
सजी-धजी बेर जैक लिजी मैं यथां- उथां दौड़ै छी,,,
मैं आज खुशी छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,
उड़ कौवा तू निकर कांव- कांव रे,,,
मैं कैणी पत्त छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,
मैं न्हीं जाणन बात कैकणी बतूंला,,,,
म्यर घर'क आघिन छै मैं तै कैणी सुणूंला,,,,
पैली तू आपुण सब दगड़ियों कै बुलै ला रे,,,,
मैं गीत गै द्यूंला, तू ढोल बजा रे,,,,
उड़ कौवा तू निकर कांव- कांव रे,,,
मैं कैणी पत्त छू, म्यर परदेशी आमुरे,,,,
उत्तराखंड प्रचलित कुमाऊनी लोकगीत २८
मधुर लोकगीत
ReplyDeleteThank you
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