"मैं' ल तुमु है कतुक बार कै रखौ, तनख्वाह मिलण बखत कुछ डबल म्यर हाथ में धर दी करौ। पर तुम्हर हाथ बै एक दमड़ी न्हैं झड़ैंन। मैं क्रीम- पाउडर क ल्ही डबल न्हैं मांगणैं। तीन महैंण बै नाणा क फीस जाम न्हैं रै। आज स्कूल बै फोन ऐ रौछी, १५ तारीख़ तक स्कूल क फीस जाम न्हैं हौली त स्कूल बै नाणों क नाम काट द्यी जाल।। अब तुमी बतै द्यौ, आखिर मैं कैक आघिन बै जैबेर हाथ फैलूं।"
गंगा क बातों कै सुणी बेर सुरेश कुुण लागौ,
"ठीक छू, मैं भोल ब्याखुली तक कोई न कोई इंतज़ाम कर द्यी द्यौल"।
"इंतजाम! किलै? तुमरी यौ महैणक तनख्वाह त मिल गै हुन्यैल नैं!"
गंगा ल भौंव में गांठ मार बेर पुछौ। गंगा क पुछण पर सुरेश ल लै गिजां कै कस बेर जवाब दी।
"यौ तनख्वाह कै मैं आपणी अय्यासी में न्हैं लुटौणें, सबै तनख्वाह तुमरी मली बै खर्च हुणै। पछिल महैण शेर दा थै जो उधार मांगि रौछी, वीक उधार दिण छी या न्हैं? यौ महैण क तनखा उधार दिण में खतम है गै।"
यो सुणते ही गंगा कपाव में हाथ धर बेर धम्म कै भै गै। और कुण लागि,
"नाणा क बाज्यू आजि त संते महैण धरिये छू, राशनपाणि कैई लै नैं ऐरै, नैं नाणौं क फीस जमा है रै, मैं कै लै त बतावा जरा आखिर कर्ज ल्यी बेर कै- कै पुर करला।"
गंगा क बात सुणिबेर सुरेश क पार और सकर गरम है गो, उ द्विनों हाथ मुण में धरबेर कुण लागि, भाग्यवान तूई बतै दै जरा, आखिर अब मैं ल कै करन चैं, चोरि कर बेर लौं, कांई डांक डालौं, या फिर आपुण गुर्द भेचि औं। आखिर कै करौं बता? बता नैं?
उन द्विनों क कड़कड़ाट सुण बेर नाण लै उठ बेर भै गई। नाणा कै द्यैखते ही गंगा उनर मुणा कै च्यापि बेर जोर- जोर ल थप- थपोंड़ लागि। और झगड़ कै बढ़न द्यैख बेर सुरेश लै मुड़ में दरी बिछै बेर घुरी गौ। गंगा जो बात कुणै ठीक कुणै। सुरेश यौ बात कै जाण छी, लेकिन उ लै मजबूर छी। सुरेश में पीण- खाणक जास क्वै इलम न्हैं छी, ।।।।।।।
दुसर दिन सुरेश' ल आपुण दगड़ुवां थै डबल मांगी, पर यौ बार कैलै लै वीक मदद नैं करि, सबें दगड़ुवां' ल वीके टरकै द्यी। किलै कि वील पैली क उधार लै न्हैं लौटे रैछी।,,,,,
देखण- देखणै एक हफ्त बीत गौ, नाणा' क फीस आजि लै जाम न्हीं है रौछी। गंगा कै नाणा क भविष्य कै लिबेर भौत चिंता हुण लागि। अब वीकै लागणौ छी, कि यौ मंहगाई में एक आदिम क कमाई ल घर चलौण भौतै मुश्किल काम छू। आपुण नाणा क भविष्य क ल्ही अब वीकै लै काम करण चैंण। वील आपणी मन में ठाणी ली, कि अब उ लै काम करैली। उ आज ब्याखुली कै नाणा क बाज्यू थै बात करैली।
रात कै खाणु खाई बाद गंगा सुरेश थै कौणी,
"सुणौ हौ, यौ महंगाई जमाण में एक मनखी क कमाई ल घर चलौण भौत मुश्किल काम छू, अगल- बगल में सबै सैणी काम करन जाणि, मैं सोचनैं छी कि मैं लै नौकरी कर ल्यौं ?"
गंगा क बात सुणते ही सुरेश कुण लागि, "पैली यौ घर और नाणा कै भलिक समाई लै, पै जैबेर बात करिए।"
"सुणौ त सही" गंगा फिर कुणी, "रत्ते तुमर और नाणा क स्कूल जाई बाद मैं घर में इकलै उदैखी जाणूं, तबै मैं.....!
गंगा क बात कैै बीच में काटबेर सुुुुरेश कुण लागौ,
"यो दिल्ली छू, हमर पहाड़ न्हैं। द्वी मिनट नी लागण, यां नाणा कै गायब हुण में, "तू नौकरी करण जाली त यूं नाणा कै कौ द्यैखल?"
यौई बात त गंगा कै लै परेशान करन छी कि यदि उ नौकरी करण जालि त स्कूल बै आई बाद नाणां कै कौ द्यैखल। घर क हाल कै द्यैखते हुए नौकरी करण लै जरूरी छी। भौत देर सोचनक बाद गंगा कुणी, "तुमरी बात लै सही छू, नाणां क द्यैखभाल लै जरूरी छू,
"सुणौं, मैं स्कूल में बात करिबेर द्यैखूं, मैं कक्षा १२ में फर्स्ट डिवीजन पास है रौछी। स्कूल में म्येरी नौकरी त पक्क लागि जालि। बस तुम होई कै द्यौ।" गंगा क जिद द्यैख बेर सुरेश कुण लागौ,
"जब त्वे ल ठानि हैली त, अब तू कै समझौण मतलब ढ़ुंग में आपुण ख्वर फोड़न छू। तू कै जस भल लागौ... कर! पर ध्यान धरिये! म्यर नाणा कै आंच लै न्हैं औण चैंण।"
आघिन दिन बै सुरेश क ड्यूटि और नाणां स्कूल जाई बाद गंगा ल नौकरी ढ़ूंढ़ण शुरू कर द्यी, आस- पास जतुक लै प्राइवेट स्कूल छी सब स्कूलों में आपुण बायोडाटा द्यी ऐ, पर! क्वै लै स्कूल बै इंटरव्यू क ल्यी न्हैं बुलाइ। भौत भाग दौड़ कर बेर लै वी कै नौकरी न्हैैं मिली।परदेश में नौकरी मिलण जतुक आसान काम वील समझ रौछी, पर उ उतुक आसान काम न्हैं छी।
गंगा' ल केवल बार १२तक पढ़ाई कर रौछी। जब गंगा कक्षा १२ में पढ़ छी, तबै सुरेश क रिश्त ऐ गौछी। सुरेश दिल्ली में सुपरवाइजर छू, और घर- बार बै दाड़-बकाव छू। यो सुणीबेर गंगा क इज- बोज्यू ल ज्यादा खान तलाशी न्हैं करी, और रिस्त क ल्ही होई कै दी। गंगा बान क कुटुकि छी, सुरेश क देखतै ही मन ऐ गै, और फिर कै छी, चट मंगनी पट ब्याह हैगौ।
ब्या क एकात साल त भौत भल बितौ, नौ गोरू क नौ पुल घा क है रौछी। पर! राकेश कभै घर में ड़बल न्हीं भेज छी। साल खतम होते ही सास- सौर' लै ब्वारि कै सुरेश' क पास दिल्ली भेज द्यी।
मैं दिल्ली जाणू, यो सोचि बेर गंगा भौत खुश छी। दिल्ली कै ल्ही बेर वील भौत स्वींण सजै रौछी। आज उं स्वींणौं' क पुर हुणी टैम ऐ गौछी,,,,,
गंगा' ल जब दिल्ली में पैल बार आपुण खुट धरौ, ऊंच- ऊंच आसमान कै छूणी मकान, चमचमाणी साफ- सुथर रोड़, उ में सरपट दौड़नी गाड़ी द्यैखबेर उ रणी जसी गै, भया ओरी खुशी है गै।,,,,,, पर उ' क यौ खुशी ज्यादा देर न्हैं टिकी।,,, बस..... थोड़ी ही देर बाद वीक सबै खुशी फुर्र हैगीं। आपुण घर में क़दम रखते ही गंगा' क मुखड़ी' क रंगे उड़ि गौ।,,,,,,
सुरेश'ल कच्ची कलोनी में एक कमर किरै पर ल्ही रौछी, चार मुवासों' क एक नाणी (गुसलखान) और एक हगैणी (शौचालय) छी।,,,,,
गंगा' कै दिल्ली में चार दिन बितौण भौते भारि है पड़ीं। पाणी और बिजुली कै ल्ही बेर मकान मालिक रत्तै- ब्याल इतुक कचकचाट करछी कि वीक कपाव में पीड़ है जैछी। गर्मी में लू' क थपैड़, नुणैन पाणी और घर' क आघिन बै खुली नाली' क बास' ल वीक मन भौते उकुशी गौ। वीक मन करणै छी कि यो दिल्ली कै छोड़ि- छाड़ि बेर आपणी पहाड़ भागि जौं, और फिर कभै लौट बेर न्हैं औंछी। आखिर आपुण मन कै मार बेर गंगा' कै दिल्ली में रण पड़ौ।
आज गंगा कै दिल्ली में पुर आठ साल है गईं, और वीक भला- भल द्वी नाण है गौछी। पर वी के आज लै यो दिल्ली आपणी पहाड़ कतुक भल न्हैं लागि।,,,,,
वी कै आज लै आपणी पहाड़ों' क भौते निराई लाग छी। उ तरस गौछी आपणी पहाड़ों' क खुली हुई घर और आंगण ल्ही, ताज़ि-ताजि हाऊ, मीठो-मीठ पाणी ल्ही, हरी- भरि डाव ल्ही और आपणी घर- परिवार' क मनखियों क मुखडी कै द्येखणै क ल्ही। और फिर पुराणी बातों कै सोचण- सोचणे गंगा' क आंखों बै आंसू' क तड़तड़ाट है पड़ी। और फिर उ जोर- जोर' ल डाड़ मारण लागि ग्यै, भ्यार आवाज न्हैं जालि यो सोचि बेर, वील आपुण धोती' क आंचव कै आपुण मुख में ठुंसी ल्ही।,,,,, भौत देर तक डाड़ मारी बाद वील आपु कै समावा, और फिर माठु- माठ आपुण घर' क काम पै लागि गै।
भोल १५ तारीख छी, आजि लै नाणा' क फीस जाम न्हैं रौछी, आंखिर में मजबूर है बेर गंगा कै आपणी हाथे क सुने की अंगुठी निकाव बेर दिण पड़ी। सुरेश' ल अंगुठी पकड़ी और चुपचाप भ्यार कै निकव गौ।,,
दूसर दिन गंगा नाणा' क फीस जाम कर बेर आपणी दगड़ी राधा थै मिलण न्हैं गै। गंगा कै अचानक देखि बेर राधा भौत खुशी हैगे। यकै मुलुका' क हुण' क कारण द्विनौं' क बीच में भौत पक्की दोस्ती छी। कुशल-पात पुछी और चहा-पाणी पी बेर गंगा कौणी, "राधा, अब मैं लै काम करणैं' क सोच रैयूं। नाणा' क बाज्यू' क तनखा' ल' कै घरा' क खर्चे पुर न्हीं हुणै! कर्ज दिन पर दिन बढ़ते जाणौ, यौ बीच में मैं' ल नौकरी ल्ही भौत हाथ- खुट मारी। पर काईं लै बात न्हीं बणी। त्वै कैै' त पत्त छौ, मैं भौत पढ़ी- लिखी न्हैं, अब मैं सोच रैयूं कि मैं कोई लै काम कर ल्यौंल; त्यर नजर में कोई काम छू' त बता?,,,,,
राधा कौणी, "गंगा मैं' त मैंत- सौरास द्विनों बै गरीब घरै' क छौ, मैं' त कोई लै काम कर सकनूं। पर तू' त ठुलि घरै' की च्येली- ब्वारि छै क्या तू कर पाली?"
गंगा कौणी, "मैं' ल यौ काम आपुण नाणा' क भविष्य' क ल्ही करण छू, यौं आठ साल में मैं' ल सिर्फ आपुण फाटि हाल द्यैख रखी, और अब यौ फाटी हाल' ल मैं कै सबै दुनियादारी सिखै हैली। तू काम बता यार, बस"।,,,,
राधा कोणी, "बेली नाणा' क बाज्यू बतौण छी कि उनेरी मेमसाब कै एक खाणु बड़ौंनी सैणी' क जरूरत छू। उनर साहब और मेमसाब द्वीनों दिल्ली' क जाणीं- मानि सरकारी वकील छैं। और पहाड़ी छैं, घर में सिर्फ सैणी- मैस रौणी, और उनेरी एक नाणी छौ, उ विदेश में डॅाक्टरी पढ़नै। तू खाणु भौत मिठ बणौ छी, तूकै ठीक लागणौ; त मैं बात कर द्यौंल"।,,,,थोड़ी देर सोचण' क बाद गंगा कुणी, "ठीक छू, मैं करुंल यौ काम"।,,,,,
राधा कुणी, "ठीक छू, ब्याखुली कै हिटुल"। ब्याखुली में नाणा कै राधा' क घर छोड़ि बेर राधा और गंगा थ्वाड दूर जैबेर एक भलौभल मकान' क आघिण में रुकी, राधा' ल घंटी बजै, ४५- ५० साल' क एक सैणीं' ल द्वार खोलि, राधा कुणी, "मेमसाब पैलाग; मैं तुमरी ड्राइवर गोपी' क दुल्हैण छूूं। बेली ब्याखुली कै गोपी बतौण छी कि मैमसाब कै एक खाणु बड़ौनी सैणी' क जरूरत छू। यौ म्यैरी दगड़ी गंगा छौ। यौ भौत भल खाणु बणै। और यकै नौकरी' क लै भौत जरूरत छू। क् आपु यकै आपणी घर में नौकरी द्यी रख सकछा?
राधा' क बात सुणिबेर मैमसाब कुणी, "तुम द्विनों भीतर कै आवो" मेमसाब' ल गंगा कै आपणी चूल्याण दिखै दी और वी कै सब काम समझै बेर कुणी, रावत ज्यू कै खाणु भल लागलौ, तबै मैं तुमकै काम में रख सकौल। गंगा झटपट चूल्याण गै और वील झटपट एक घंट में रवाट- साग, रैत, खटै सबै बणै दी।
मेमसाब और रावत ज्यू कै खाणु भौत भल लागौ, तीन हजार रूपै तनख्वाह में उनूंल गंगा कै नौकरी में रख ल्ही। खाणु बणौन' क तीन हजार रूपैं मिलाल, यौ सोचिबेर गंगा' क ख़ुशी'क ठिकाणें न्हीं है रौछी। और यौ काम घर' क नजदीक मिल गौछी। रत्तै- ब्याल सिर्फ एक- एक घंट' काम पर जाण छी। अब उ आपुण नाणा' कै भली कै द्यैख सकेली, और पढ़े सकेली। अब वीक मन में बस एकै बात खटकनै छी कि कै?,,, नाणा' क बाज्यू राजी हौला कि न्है?? ड्यूटी बै घर आई बाद खाणू खै बेर जसै सुरेश सीतन लागि; गंगा जिगर छैड़ी द्यी। सुणौं हौ! "रावत ज्यू, वकील जाण छा??? सुरेश' ल मुड़ पर बिछी दरी में लधार मारते ज़बाब द्यी, उनकै कौ न्हैं जाणन। यौ दिल्ली में हमरी उत्तराखंड' क शान छै उं। और भौते भल, मायालू और दानी मनखी छैं।
"मैं भोल बै वां खांड़ू बडौंन जाणूं"! यौ सुणते ही सुरेश' ल पूछौ! मतलब???? गंगा कौणी, " बेली राधा' ल बता मैं कै यौ काम। और मैं कै लै ठीक लागौ, आपुण पहाड़ मनखी छै।रत्ते- ब्याल एक- एक घंट' क काम छू,,, बस। थोड़ी देर सोचण बाद सुरेश कुण लागि, "मैं कै कोई आपत्ती न्हैं। तू कर सकछी तो कर"। आगिन दिन गंगा' ल रत्तै सरासर कलयौ बणा, नाणा कै तैयार करी, उनकै स्कूल छोड़ बेर आपुण काम पै पहुंच गै।
और देखण- देखणै साल बित गो। गंगा भौत मेहनती और ईमानदार सैणी छी। गंगा' क काम और वीक व्यवहार कै द्यैख बेर वकील साब और मेमसाब द्वीनों भौत खुश है गईं। ,,,,माठु- माठ अब सुरेश' क आर्थिक स्थिति लै सुधरण लागि गै, और सुरेश' क व्यवहार लै मीठ हुण लागौ।
मेमसाब हमेशा गंगा थै कुणै रौछी, "गंगा पढ़ने' क कोई उमर न्हीं हुणी। तू आगिने' की पढ़ाई शुरू कर दै, त्येरी पढ़ाई में जतुक लै खर्च लागल मैं द्यौंल"।,,,, मेमसाब' क बार-बार कुण पर गंगा' ल बी.ए.' क पढ़ाई शुरू कर द्यी। और देखण- देखणे तीन साल बीत गयी, गंगा' ल बी. ए. फर्स्ट डिवीजन' ल पास करी। आज सुरेश पैल बार गंगा' क तरक्की' ल भौत खुशी हौ।
बी. ए. पास करण बाद मेमसाब कुण लागि," गंगा आपुण यौ सफर कै अब रुकण झन दै। अब तु आघिन कै एल. एल. बी. कर। मैं हमेशा त्यर साथ छौं"। गंगा' ल मेमसाब' क घर और आफिस' क सबै काम और जिम्मेदारी आपुण ख्वार ल्ही ली।
मेमसाब' क दिखाई रास्त में हिट बेर गंगा' ल एल.एल. बी. करौ और मेमसाब' क पास रै बेर सात साल वकालते' क प्रेक्टिस करी।,,,,, गंगा' ल आपुण हर काम कै भौतै निष्ठा और जिम्मेदारी' ल निभा।,,,,,
बीस साल पंख लगै बेर कब निकल गई, गंगा कै पत्त लै न्हैं लागि। इन बीस सालों में गंगा दिल्ली में एक जाणि- माणी हस्ती बण गै।
इतू साल दिल्ली में रै बेर भौते संघर्ष और मेहनत कर बेर गंगा' ल सबै कुछ हासिल कर हालि छी, लेकिन फिर लै उ कै हर पल, हर घड़ी आपणी पहाडो की याद औछी। जो सुकून वीक पहाडो में छू, उ सुकून धरती क्वैड कुण में न्हैं।
अब यां बै वील आपुण आघिन जीवन उत्तराखंड कै सौंप द्यी, आपणी मेहनत और लगन' ल आज गंगा उत्तराखंड में एक भौत ठुली वकील छू।,,,, और साथ में गंगा कई ग़रीब नाणा कै पढ़ें। उनेरी पढ़ाई-लिखाई ख़र्च उठे। गंगा' क माणन छू, कि वीक जरा सा कोशिश' ल भोल हुनकै कई और गंगा तैयार है जाल।
गंगा द्विनों नाण उत्तराखंड में डाक्टर और वकील छैं। आपणी लगन और मेहनत' ल आज गंगा' क परिवार समाज में एक सम्मानित और खुशहाल जिन्दगी बितौण लागि रीं।
स्वरचित: मंजू बिष्ट,
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।