बेली नाणा' क बाज्यू जनम दिन छि। ब्याखुली कै घर' क काम- धाम निपटैबेर मैं सोचन लागि रौछी, कि यौ लाॅकडाउन में नाना' क बाज्यू' क जनम दिन कसिक मनाई जावो। तबै फोन' कि घंटी बजी। फोन परूली' क इज' क छी।
परूली एक गरीब घरै कि नाणी छू। परूली'क बाज्यू मसीड़ी बिमारी कारणै' ल खाट में पड़ी रै्नी। परूली'क इजा और वीक द्वी दिदि मजुरी करबेर घर' क खर्च चलौनी। परूली पढ़न-लिखण में भौतै होशियार नानी छू। परूली'क पढन- लिखण में लगन देखी बेर कक्षा ३ बै वीक पढ़न-लिखण'क जिम्म मैं'ल आपुण ख्वर में ल्ही लीछ। आज परूली कक्षा ५ में न्है गैछ।
" नाण द्वी दिन बै भूकै छैं", यो सुणबेर मैके भौते कइ-कई लागि गै। मैं मनै- मन द्यातौ थै प्रार्थना करण लागि गयूं, कि हे भगवान यो कोरोना महामारी' ल भ्याराक सबै दैशों में आपुन आतंक फैलै राखि छू। अब यौ महामारी हमर देश में आपुन खुट जमौन लागि गे। हमर देश में गरीबी भौतै सकर छू, यस हाल में गरीब मनखी भूखमरी कै मर जाल। हे भगवान अब तुमी हम सबूं पर आपुन छत्र-छाया करौ।
नाना' क बाज्यू कुणी, "लाॅकडाउन चलरौ, यौ साल रैन द्यौ, जन्मदिन दिन आघिन साल मणै ल्यूंल।
नाणा क बाज्यू कुणी, "ठीक छू बाबा, तुमन कै जस भल लागौ उस करौ"!
मैं सरासर रस्याखन गयूं; संदूक खोली, बैली रत्तै नाना' क बाज्यू राशन-पानी लै रछी, मैंल आदुक राशन निकालबेर एक झ्वाल में भर दी, और मैं नाणा' क बाज्यू पार गयूं, उनर हाथों में झ्वाल कै दी बेर बोल्यू, यो "झ्वाल कै परूली'क इज कै दी द्यौ।
नाणा' क बाज्यू थोड़ी देर म्येरी मुुखड़ी कै देखते रैयी, फिर हंसते हुए मास्क पहनी, और झ्वाल कै पकडबेर भ्यार कै न्हैगीं।
आपुन यौ नानुनान काम'ल म्येरी क्वाठ में भौतै शांति पड़ी।
स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट,
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
मूल निवासी: हल्द्वानी, नैनीताल,
उत्तराखंड।
वाह बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteVery nice
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