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Sunday, 3 May 2020

कोरोनावायरस: कविता

कोरोनावायरस सारी दुणी में;
त्वैल मचै रौ हाहाकार।
काम-धाम चौपट कर है्ली,
उज्याड़ी है्यी मनखियों'क घर-बार।।
झींस जस यो वाइरस छ;
सबै आपु कै बचै रखि्या
आमा- बुबु, नान ठुल;
आपणी कुड़ी भित्र रैया।।
आंख, नाख, और मुखकै;
हाथों लै ना तुम छू्ंया।
ठंड जस लागल तुमके;
अदरक, तुलसी काड़ पि्या।।
रगड़-रगड़ बैर आपुण हाथों कै;
साबुन लै धोते रैया।
गौं मनखी है दूरी बणैया;
आपणी घर-कुड़ी बचै रखि्या।
जो देख्यीणी कोरोना लछण;
दाज्यू तुम ना डरि्या।
स्वास्थ्य सेवा'क मनखी बुलै बेर;
तुम आपु कै दिखै लि्या।।
आपु बचि्या महामारी लै;
देवभूमि कै बचै रखि्या।
लाॅकडाउन में भारत भूमि छ;
म्यर भारत'क दगड़ रैया।।
सबै मिली बेर वचन लि्हया
लाॅकडाउन में सबै रूंला।
देशक सांच मनखी बणबेर;
आपुण फर्ज पुरै करला।।

सर्वाधिकार सुरक्षित‌
स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।
गाजियाबाद; उत्तर प्रदेश।
मूल निवासी: हल्द्वानी; नैनीताल।
उत्तराखण्ड।
प्रकाशित

3 comments:

  1. सुंदर और सार्थक रचना

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  2. मंजू जी मैंने आपकी समस्त रचनाएं पढ ली है। बहुत सुंदर उम्दा लिखा आपने

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  3. मेरी दुआ है आप खूब तरक्की करें,,सच कहूं आप मेरी प्रेरणा हैं। आपको देखकर मेरा भी हौसला बढ़ता है।

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