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Friday, 1 May 2020

गीत: तुमी न्हैं गैछा छोडि बैरा।

तुमी न्हैं गैछा छोडि बैरा।
कसि रूंला तुमरी बग़ैरा।। 
तुमी न्हैं गैछा छोडि बैरा।
कसि रूंला तुमरी बग़ैरा।।

कसमों- रस्मों कै भुुली गैछा।
बीच भंवर में छोड़ि गैछा।।
ओ,,,,,,,कसमों- रस्मों कै भुुली गैछा
बीच भंवर में छोड़ि गैछा।
किलै न्हीं सोचि,,,,,,किलै न्हीं सोचि इक बारा,,,,?
ओ,,,,तुमुल न्हीं सोचि इक बारा,,,,?
कसिक रौली तुमरी बग़ैरा।।
तुमुल न्हीं सोचि इक बारा,,,,?
कसिक रौली तुमरी बग़ैरा।।

तुमी न्हैं गैछा छोडि बैरा।
कसिक रूंला तुमरी बग़ैरा।। 

नाण-तीना कै छोड़ि गैछा।
छ्वार-मुवा तुम करी गैछा।
ओ,,,,,,नाण-तीना कै छोड़ि गैछा।
छ्वार-मुवा तुम करी गैछा।
कलै न्हीं सोचि,,,,,,किलै न्हीं सोचि इक बारा,,,,?
ओ,,,, तुमुल न्हीं सोचि इक बारा,,,,?
कसिक रौला बाज्यू' क बगैरा।।
तुमुल न्हीं सोचि इक बारा,,,,?
कसिक रौला बाज्यू' क बगैरा।।

तुमी न्हैं गैछा छोडि बैरा।
कसि रूंला तुमरी बग़ैरा।। 

सासू- सौर ढूंढण में रेंगीं।
तुमर बाटा देखण में रेंगीं
ओ,,,,,,,सासू- सौर ढूंढण में रेंगीं।
तुमरी बाटा देखण में रेंगीं
कब आलौ लाड़िल हमरा,,,?
ओ,,,,कब आलौ पोथिल हमरा,,,,?
रुणैं- रूणैं पड़ीं छैं बेसुुुधा।।
कब आलौ लाड़िल हमरा,,,?
कब आल पोथिल हमरा,,,,?
रुणैं- रूणैं पड़ीं छैं बेसुुुधा।।

तुमी न्हैं गैछा छोडि बैरा।
कसिक रूंला तुमरी बग़ैरा।। 

सर्वाधिकार सुरक्षित।
स्वरचित: मंजू बिष्ट; 
गाजियाबाद; उत्तर प्रदेश।
मूल निवासी: हल्द्वानी; नैनीताल।
(उत्तराखंड)

7 comments:

  1. गीत को स्वर में ढाला जा सकता है,
    यह तो कविता की जैसी पंक्तियां लग रही हैं।

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  2. मैं एक नवोदित रचनाकार हूं। अभी मुझे गीत लिखने का अनुभव नहीं है, बस मैंने एक कोशिश की है।

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    Replies
    1. एक दिन कामयाबी तुम्हारे कदम अवश्य चूमेगी।

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  3. बेहद मार्मिक गीत

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  4. अच्छी शुरुआत है ‌,,,

    ReplyDelete

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